चौपाई
 बोलेउ काकभसुंड बहोरी। नभग नाथ पर प्रीति न थोरी।। 
 सब बिधि नाथ पूज्य तुम्ह मेरे। कृपापात्र रघुनायक केरे।।
 तुम्हहि न संसय मोह न माया। मो पर नाथ कीन्ह तुम्ह दाया।। 
 पठइ मोह मिस खगपति तोही। रघुपति दीन्हि बड़ाई मोही।।
 तुम्ह निज मोह कही खग साईं। सो नहिं कछु आचरज गोसाईं।। 
 नारद भव बिरंचि सनकादी। जे मुनिनायक आतमबादी।।
 मोह न अंध कीन्ह केहि केही। को जग काम नचाव न जेही।। 
 तृस्नाँ केहि न कीन्ह बौराहा। केहि कर हृदय क्रोध नहिं दाहा।।
दोहा/सोरठा
ग्यानी तापस सूर कबि कोबिद गुन आगार।     
     केहि कै लौभ बिडंबना कीन्हि न एहिं संसार।।70(क)।।
    श्री मद बक्र न कीन्ह केहि प्रभुता बधिर न काहि। 
     मृगलोचनि के नैन सर को अस लाग न जाहि।।70(ख)।।
