चौपाई
 देखि चरित यह सो प्रभुताई। समुझत देह दसा बिसराई।। 
 धरनि परेउँ मुख आव न बाता। त्राहि त्राहि आरत जन त्राता।।
 प्रेमाकुल प्रभु मोहि बिलोकी। निज माया प्रभुता तब रोकी।। 
 कर सरोज प्रभु मम सिर धरेऊ। दीनदयाल सकल दुख हरेऊ।।
 कीन्ह राम मोहि बिगत बिमोहा। सेवक सुखद कृपा संदोहा।। 
 प्रभुता प्रथम बिचारि बिचारी। मन महँ होइ हरष अति भारी।।
 भगत बछलता प्रभु कै देखी। उपजी मम उर प्रीति बिसेषी।। 
 सजल नयन पुलकित कर जोरी। कीन्हिउँ बहु बिधि बिनय बहोरी।।
दोहा/सोरठा
सुनि सप्रेम मम बानी देखि दीन निज दास।  
    बचन सुखद गंभीर मृदु बोले रमानिवास।।83(क)।।
    काकभसुंडि मागु बर अति प्रसन्न मोहि जानि। 
    अनिमादिक सिधि अपर रिधि मोच्छ सकल सुख खानि।।83(ख)।।
