चौपाई
अब सुनु परम बिमल मम बानी। सत्य सुगम निगमादि बखानी।।
 निज सिद्धांत सुनावउँ तोही। सुनु मन धरु सब तजि भजु मोही।।
मम माया संभव संसारा। जीव चराचर बिबिधि प्रकारा।।
 सब मम प्रिय सब मम उपजाए। सब ते अधिक मनुज मोहि भाए।।
तिन्ह महँ द्विज द्विज महँ श्रुतिधारी। तिन्ह महुँ निगम धरम अनुसारी।।
 तिन्ह महँ प्रिय बिरक्त पुनि ग्यानी। ग्यानिहु ते अति प्रिय बिग्यानी।।
तिन्ह ते पुनि मोहि प्रिय निज दासा। जेहि गति मोरि न दूसरि आसा।। 
 पुनि पुनि सत्य कहउँ तोहि पाहीं। मोहि सेवक सम प्रिय कोउ नाहीं।।
भगति हीन बिरंचि किन होई। सब जीवहु सम प्रिय मोहि सोई।।
 भगतिवंत अति नीचउ प्रानी। मोहि प्रानप्रिय असि मम बानी।।
दोहा/सोरठा
सुचि सुसील सेवक सुमति प्रिय कहु काहि न लाग।  
    श्रुति पुरान कह नीति असि सावधान सुनु काग।।86।।
