चौपाई
 कबहूँ काल न ब्यापिहि तोही। सुमिरेसु भजेसु निरंतर मोही।। 
 प्रभु बचनामृत सुनि न अघाऊँ। तनु पुलकित मन अति हरषाऊँ।।
 सो सुख जानइ मन अरु काना। नहिं रसना पहिं जाइ बखाना।। 
 प्रभु सोभा सुख जानहिं नयना। कहि किमि सकहिं तिन्हहि नहिं बयना।।
 बहु बिधि मोहि प्रबोधि सुख देई। लगे करन सिसु कौतुक तेई।। 
 सजल नयन कछु मुख करि रूखा। चितइ मातु लागी अति भूखा।।
 देखि मातु आतुर उठि धाई। कहि मृदु बचन लिए उर लाई।। 
 गोद राखि कराव पय पाना। रघुपति चरित ललित कर गाना।।
दोहा/सोरठा
जेहि सुख लागि पुरारि असुभ बेष कृत सिव सुखद।  
    अवधपुरी नर नारि तेहि सुख महुँ संतत मगन।।88(क)।।
    सोइ सुख लवलेस जिन्ह बारक सपनेहुँ लहेउ।  
    ते नहिं गनहिं खगेस ब्रह्मसुखहि सज्जन सुमति।।88(ख)।।
