चौपाई
 सुनि भुसुंडि के बचन सुहाए। हरषित खगपति पंख फुलाए।। 
 नयन नीर मन अति हरषाना। श्रीरघुपति प्रताप उर आना।।
 पाछिल मोह समुझि पछिताना। ब्रह्म अनादि मनुज करि माना।। 
 पुनि पुनि काग चरन सिरु नावा। जानि राम सम प्रेम बढ़ावा।।
 गुर बिनु भव निधि तरइ न कोई। जौं बिरंचि संकर सम होई।। 
 संसय सर्प ग्रसेउ मोहि ताता। दुखद लहरि कुतर्क बहु ब्राता।।
 तव सरूप गारुड़ि रघुनायक। मोहि जिआयउ जन सुखदायक।। 
 तव प्रसाद मम मोह नसाना। राम रहस्य अनूपम जाना।।
दोहा/सोरठा
ताहि प्रसंसि बिबिध बिधि सीस नाइ कर जोरि।  
    बचन बिनीत सप्रेम मृदु बोलेउ गरुड़ बहोरि।।93(क)।।
    प्रभु अपने अबिबेक ते बूझउँ स्वामी तोहि। 
    कृपासिंधु सादर कहहु जानि दास निज मोहि।।93(ख)।।
