चौपाई
 तुम्ह सर्बग्य तन्य तम पारा। सुमति सुसील सरल आचारा।। 
 ग्यान बिरति बिग्यान निवासा। रघुनायक के तुम्ह प्रिय दासा।।
 कारन कवन देह यह पाई। तात सकल मोहि कहहु बुझाई।। 
 राम चरित सर सुंदर स्वामी। पायहु कहाँ कहहु नभगामी।।
 नाथ सुना मैं अस सिव पाहीं। महा प्रलयहुँ नास तव नाहीं।। 
 मुधा बचन नहिं ईस्वर कहई। सोउ मोरें मन संसय अहई।।
 अग जग जीव नाग नर देवा। नाथ सकल जगु काल कलेवा।। 
 अंड कटाह अमित लय कारी। कालु सदा दुरतिक्रम भारी।।
दोहा/सोरठा
तुम्हहि न ब्यापत काल अति कराल कारन कवन।  
    मोहि सो कहहु कृपाल ग्यान प्रभाव कि जोग बल।।94(क)।।
  प्रभु तव आश्रम आएँ मोर मोह भ्रम भाग।  
    कारन कवन सो नाथ सब कहहु सहित अनुराग।।94(ख)।।
