चौपाई
 प्रेरित मंत्र ब्रह्मसर धावा। चला भाजि बायस भय पावा।। 
 धरि निज रुप गयउ पितु पाहीं। राम बिमुख राखा तेहि नाहीं।।
 भा निरास उपजी मन त्रासा। जथा चक्र भय रिषि दुर्बासा।। 
 ब्रह्मधाम सिवपुर सब लोका। फिरा श्रमित ब्याकुल भय सोका।।
 काहूँ बैठन कहा न ओही। राखि को सकइ राम कर द्रोही।। 
 मातु मृत्यु पितु समन समाना। सुधा होइ बिष सुनु हरिजाना।।
 मित्र करइ सत रिपु कै करनी। ता कहँ बिबुधनदी बैतरनी।। 
 सब जगु ताहि अनलहु ते ताता। जो रघुबीर बिमुख सुनु भ्राता।।
 नारद देखा बिकल जयंता। लागि दया कोमल चित संता।। 
 पठवा तुरत राम पहिं ताही। कहेसि पुकारि प्रनत हित पाही।।
 आतुर सभय गहेसि पद जाई। त्राहि त्राहि दयाल रघुराई।। 
 अतुलित बल अतुलित प्रभुताई। मैं मतिमंद जानि नहिं पाई।।
 निज कृत कर्म जनित फल पायउँ। अब प्रभु पाहि सरन तकि आयउँ।। 
 सुनि कृपाल अति आरत बानी। एकनयन करि तजा भवानी।।
दोहा/सोरठा
कीन्ह मोह बस द्रोह जद्यपि तेहि कर बध उचित। 
 प्रभु छाड़ेउ करि छोह को कृपाल रघुबीर सम।।2।।
