चौपाई
 नाक कान बिनु भइ बिकरारा। जनु स्त्रव सैल गैरु कै धारा।। 
 खर दूषन पहिं गइ बिलपाता। धिग धिग तव पौरुष बल भ्राता।।
 तेहि पूछा सब कहेसि बुझाई। जातुधान सुनि सेन बनाई।। 
 धाए निसिचर निकर बरूथा। जनु सपच्छ कज्जल गिरि जूथा।।
 नाना बाहन नानाकारा। नानायुध धर घोर अपारा।। 
 सुपनखा आगें करि लीनी। असुभ रूप श्रुति नासा हीनी।।
 असगुन अमित होहिं भयकारी। गनहिं न मृत्यु बिबस सब झारी।। 
 गर्जहि तर्जहिं गगन उड़ाहीं। देखि कटकु भट अति हरषाहीं।।
 कोउ कह जिअत धरहु द्वौ भाई। धरि मारहु तिय लेहु छड़ाई।। 
 धूरि पूरि नभ मंडल रहा। राम बोलाइ अनुज सन कहा।।
 लै जानकिहि जाहु गिरि कंदर। आवा निसिचर कटकु भयंकर।। 
 रहेहु सजग सुनि प्रभु कै बानी। चले सहित श्री सर धनु पानी।।
 देखि राम रिपुदल चलि आवा। बिहसि कठिन कोदंड चढ़ावा।।
छंद
कोदंड कठिन चढ़ाइ सिर जट जूट बाँधत सोह क्यों।  
    मरकत सयल पर लरत दामिनि कोटि सों जुग भुजग ज्यों।।
  कटि कसि निषंग बिसाल भुज गहि चाप बिसिख सुधारि कै।। 
    चितवत मनहुँ मृगराज प्रभु गजराज घटा निहारि कै।।
दोहा/सोरठा
आइ गए बगमेल धरहु धरहु धावत सुभट।  
     जथा बिलोकि अकेल बाल रबिहि घेरत दनुज।।18।।
