चौपाई
 गीध देह तजि धरि हरि रुपा। भूषन बहु पट पीत अनूपा।। 
 स्याम गात बिसाल भुज चारी। अस्तुति करत नयन भरि बारी।।
छंद
जय राम रूप अनूप निर्गुन सगुन गुन प्रेरक सही।  
    दससीस बाहु प्रचंड खंडन चंड सर मंडन मही।।
 पाथोद गात सरोज मुख राजीव आयत लोचनं।  
    नित नौमि रामु कृपाल बाहु बिसाल भव भय मोचनं।।1।।
    बलमप्रमेयमनादिमजमब्यक्तमेकमगोचरं। 
    गोबिंद गोपर द्वंद्वहर बिग्यानघन धरनीधरं।।
 जे राम मंत्र जपंत संत अनंत जन मन रंजनं।  
    नित नौमि राम अकाम प्रिय कामादि खल दल गंजनं।।2।
    जेहि श्रुति निरंजन ब्रह्म ब्यापक बिरज अज कहि गावहीं।। 
    करि ध्यान ग्यान बिराग जोग अनेक मुनि जेहि पावहीं।।
  सो प्रगट करुना कंद सोभा बृंद अग जग मोहई।  
    मम हृदय पंकज भृंग अंग अनंग बहु छबि सोहई।।3।।
    जो अगम सुगम सुभाव निर्मल असम सम सीतल सदा।  
    पस्यंति जं जोगी जतन करि करत मन गो बस सदा।।
  सो राम रमा निवास संतत दास बस त्रिभुवन धनी।  
    मम उर बसउ सो समन संसृति जासु कीरति पावनी।।4।।
दोहा/सोरठा
अबिरल भगति मागि बर गीध गयउ हरिधाम।  
    तेहि की क्रिया जथोचित निज कर कीन्ही राम।।32।।
