चौपाई
 राम बालि निज धाम पठावा। नगर लोग सब ब्याकुल धावा।। 
 नाना बिधि बिलाप कर तारा। छूटे केस न देह सँभारा।।
 तारा बिकल देखि रघुराया । दीन्ह ग्यान हरि लीन्ही माया।। 
 छिति जल पावक गगन समीरा। पंच रचित अति अधम सरीरा।।
 प्रगट सो तनु तव आगें सोवा। जीव नित्य केहि लगि तुम्ह रोवा।। 
 उपजा ग्यान चरन तब लागी। लीन्हेसि परम भगति बर मागी।।
 उमा दारु जोषित की नाई। सबहि नचावत रामु गोसाई।। 
 तब सुग्रीवहि आयसु दीन्हा। मृतक कर्म बिधिबत सब कीन्हा।।
 राम कहा अनुजहि समुझाई। राज देहु सुग्रीवहि जाई।। 
 रघुपति चरन नाइ करि माथा। चले सकल प्रेरित रघुनाथा।।
दोहा/सोरठा
लछिमन तुरत बोलाए पुरजन बिप्र समाज। 
 राजु दीन्ह सुग्रीव कहँ अंगद कहँ जुबराज।।11।।
