चौपाई
 उमा राम सम हित जग माहीं। गुरु पितु मातु बंधु प्रभु नाहीं।। 
 सुर नर मुनि सब कै यह रीती। स्वारथ लागि करहिं सब प्रीती।।
 बालि त्रास ब्याकुल दिन राती। तन बहु ब्रन चिंताँ जर छाती।। 
 सोइ सुग्रीव कीन्ह कपिराऊ। अति कृपाल रघुबीर सुभाऊ।।
 जानतहुँ अस प्रभु परिहरहीं। काहे न बिपति जाल नर परहीं।। 
 पुनि सुग्रीवहि लीन्ह बोलाई। बहु प्रकार नृपनीति सिखाई।।
 कह प्रभु सुनु सुग्रीव हरीसा। पुर न जाउँ दस चारि बरीसा।। 
 गत ग्रीषम बरषा रितु आई। रहिहउँ निकट सैल पर छाई।।
 अंगद सहित करहु तुम्ह राजू। संतत हृदय धरेहु मम काजू।। 
 जब सुग्रीव भवन फिरि आए। रामु प्रबरषन गिरि पर छाए।।
दोहा/सोरठा
प्रथमहिं देवन्ह गिरि गुहा राखेउ रुचिर बनाइ। 
 राम कृपानिधि कछु दिन बास करहिंगे आइ।।12।।
