चौपाई
 सुनहु नील अंगद हनुमाना। जामवंत मतिधीर सुजाना।। 
 सकल सुभट मिलि दच्छिन जाहू। सीता सुधि पूँछेउ सब काहू।।
 मन क्रम बचन सो जतन बिचारेहु। रामचंद्र कर काजु सँवारेहु।। 
 भानु पीठि सेइअ उर आगी। स्वामिहि सर्ब भाव छल त्यागी।।
 तजि माया सेइअ परलोका। मिटहिं सकल भव संभव सोका।। 
 देह धरे कर यह फलु भाई। भजिअ राम सब काम बिहाई।।
 सोइ गुनग्य सोई बड़भागी । जो रघुबीर चरन अनुरागी।। 
 आयसु मागि चरन सिरु नाई। चले हरषि सुमिरत रघुराई।।
 पाछें पवन तनय सिरु नावा। जानि काज प्रभु निकट बोलावा।। 
 परसा सीस सरोरुह पानी। करमुद्रिका दीन्हि जन जानी।।
 बहु प्रकार सीतहि समुझाएहु। कहि बल बिरह बेगि तुम्ह आएहु।। 
 हनुमत जन्म सुफल करि माना। चलेउ हृदयँ धरि कृपानिधाना।।
 जद्यपि प्रभु जानत सब बाता। राजनीति राखत सुरत्राता।।
दोहा/सोरठा
चले सकल बन खोजत सरिता सर गिरि खोह। 
 राम काज लयलीन मन बिसरा तन कर छोह।।23।।
