श्लोक
   कुन्देन्दीवरसुन्दरावतिबलौ विज्ञानधामावुभौ
 शोभाढ्यौ वरधन्विनौ श्रुतिनुतौ गोविप्रवृन्दप्रियौ।
  मायामानुषरूपिणौ रघुवरौ सद्धर्मवर्मौं हितौ 
  सीतान्वेषणतत्परौ पथिगतौ भक्तिप्रदौ तौ हि नः।।1।।
   ब्रह्माम्भोधिसमुद्भवं कलिमलप्रध्वंसनं चाव्ययं 
 श्रीमच्छम्भुमुखेन्दुसुन्दरवरे संशोभितं सर्वदा।
 संसारामयभेषजं सुखकरं श्रीजानकीजीवनं 
 धन्यास्ते कृतिनः पिबन्ति सततं श्रीरामनामामृतम्।।2।।
दोहा/सोरठा
 मुक्ति जन्म महि जानि ग्यान खानि अघ हानि कर 
 जहँ बस संभु भवानि सो कासी सेइअ कस न।।
   जरत सकल सुर बृंद बिषम गरल जेहिं पान किय।
 तेहि न भजसि मन मंद को कृपाल संकर सरिस।।
