चौपाई
 सखा कही तुम्ह नीकि उपाई। करिअ दैव जौं होइ सहाई।। 
 मंत्र न यह लछिमन मन भावा। राम बचन सुनि अति दुख पावा।।
 नाथ दैव कर कवन भरोसा। सोषिअ सिंधु करिअ मन रोसा।। 
 कादर मन कहुँ एक अधारा। दैव दैव आलसी पुकारा।।
 सुनत बिहसि बोले रघुबीरा। ऐसेहिं करब धरहु मन धीरा।। 
 अस कहि प्रभु अनुजहि समुझाई। सिंधु समीप गए रघुराई।।
 प्रथम प्रनाम कीन्ह सिरु नाई। बैठे पुनि तट दर्भ डसाई।। 
 जबहिं बिभीषन प्रभु पहिं आए। पाछें रावन दूत पठाए।।
दोहा/सोरठा
सकल चरित तिन्ह देखे धरें कपट कपि देह। 
 प्रभु गुन हृदयँ सराहहिं सरनागत पर नेह।।51।।
