चौपाई
 दूरि फराक रुचिर सो घाटा। जहँ जल पिअहिं बाजि गज ठाटा।। 
 पनिघट परम मनोहर नाना। तहाँ न पुरुष करहिं अस्नाना।।
 राजघाट सब बिधि सुंदर बर। मज्जहिं तहाँ बरन चारिउ नर।। 
 तीर तीर देवन्ह के मंदिर। चहुँ दिसि तिन्ह के उपबन सुंदर।।
 कहुँ कहुँ सरिता तीर उदासी। बसहिं ग्यान रत मुनि संन्यासी।। 
 तीर तीर तुलसिका सुहाई। बृंद बृंद बहु मुनिन्ह लगाई।।
 पुर सोभा कछु बरनि न जाई। बाहेर नगर परम रुचिराई।। 
 देखत पुरी अखिल अघ भागा। बन उपबन बापिका तड़ागा।।
छंद
बापीं तड़ाग अनूप कूप मनोहरायत सोहहीं।  
    सोपान सुंदर नीर निर्मल देखि सुर मुनि मोहहीं।।
  बहु रंग कंज अनेक खग कूजहिं मधुप गुंजारहीं।  
    आराम रम्य पिकादि खग रव जनु पथिक हंकारहीं।।
दोहा/सोरठा
रमानाथ जहँ राजा सो पुर बरनि कि जाइ।  
    अनिमादिक सुख संपदा रहीं अवध सब छाइ।।29।।
