चौपाई
 बैठे सोह कामरिपु कैसें। धरें सरीरु सांतरसु जैसें।। 
 पारबती भल अवसरु जानी। गई संभु पहिं मातु भवानी।।
 जानि प्रिया आदरु अति कीन्हा। बाम भाग आसनु हर दीन्हा।। 
 बैठीं सिव समीप हरषाई। पूरुब जन्म कथा चित आई।।
 पति हियँ हेतु अधिक अनुमानी। बिहसि उमा बोलीं प्रिय बानी।। 
 कथा जो सकल लोक हितकारी। सोइ पूछन चह सैलकुमारी।।
 बिस्वनाथ मम नाथ पुरारी। त्रिभुवन महिमा बिदित तुम्हारी।। 
 चर अरु अचर नाग नर देवा। सकल करहिं पद पंकज सेवा।।
दोहा/सोरठा
प्रभु समरथ सर्बग्य सिव सकल कला गुन धाम।। 
 जोग ग्यान बैराग्य निधि प्रनत कलपतरु नाम।।107।।
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ramcharitmanas
1.107 
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  चौपाई
 बैठे सोह कामरिपु कैसें। धरें सरीरु सांतरसु जैसें।। 
 पारबती भल अवसरु जानी। गई संभु पहिं मातु भवानी।।
 जानि प्रिया आदरु अति कीन्हा। बाम भाग आसनु हर दीन्हा।। 
 बैठीं सिव समीप हरषाई। पूरुब जन्म कथा चित आई।।
 पति हियँ हेतु अधिक अनुमानी। बिहसि उमा बोलीं प्रिय बानी।। 
 कथा जो सकल लोक हितकारी। सोइ पूछन चह सैलकुमारी।।
 बिस्वनाथ मम नाथ पुरारी। त्रिभुवन महिमा बिदित तुम्हारी।। 
 चर अरु अचर नाग नर देवा। सकल करहिं पद पंकज सेवा।।
दोहा/सोरठा
प्रभु समरथ सर्बग्य सिव सकल कला गुन धाम।। 
 जोग ग्यान बैराग्य निधि प्रनत कलपतरु नाम।।107।।
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