चौपाई
जौं मो पर प्रसन्न सुखरासी। जानिअ सत्य मोहि निज दासी।।
तौं प्रभु हरहु मोर अग्याना। कहि रघुनाथ कथा बिधि नाना।।
जासु भवनु सुरतरु तर होई। सहि कि दरिद्र जनित दुखु सोई।।
ससिभूषन अस हृदयँ बिचारी। हरहु नाथ मम मति भ्रम भारी।।
प्रभु जे मुनि परमारथबादी। कहहिं राम कहुँ ब्रह्म अनादी।।
सेस सारदा बेद पुराना। सकल करहिं रघुपति गुन गाना।।
तुम्ह पुनि राम राम दिन राती। सादर जपहु अनँग आराती।।
रामु सो अवध नृपति सुत सोई। की अज अगुन अलखगति कोई।।
दोहा/सोरठा
जौं नृप तनय त ब्रह्म किमि नारि बिरहँ मति भोरि।
देख चरित महिमा सुनत भ्रमति बुद्धि अति मोरि।।108।।
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ramcharitmanas
1.108
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चौपाई
जौं मो पर प्रसन्न सुखरासी। जानिअ सत्य मोहि निज दासी।।
तौं प्रभु हरहु मोर अग्याना। कहि रघुनाथ कथा बिधि नाना।।
जासु भवनु सुरतरु तर होई। सहि कि दरिद्र जनित दुखु सोई।।
ससिभूषन अस हृदयँ बिचारी। हरहु नाथ मम मति भ्रम भारी।।
प्रभु जे मुनि परमारथबादी। कहहिं राम कहुँ ब्रह्म अनादी।।
सेस सारदा बेद पुराना। सकल करहिं रघुपति गुन गाना।।
तुम्ह पुनि राम राम दिन राती। सादर जपहु अनँग आराती।।
रामु सो अवध नृपति सुत सोई। की अज अगुन अलखगति कोई।।
दोहा/सोरठा
जौं नृप तनय त ब्रह्म किमि नारि बिरहँ मति भोरि।
देख चरित महिमा सुनत भ्रमति बुद्धि अति मोरि।।108।।
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