Two Book View

ramcharitmanas

1.112

चौपाई
झूठेउ सत्य जाहि बिनु जानें। जिमि भुजंग बिनु रजु पहिचानें।। 
जेहि जानें जग जाइ हेराई। जागें जथा सपन भ्रम जाई।।
बंदउँ बालरूप सोई रामू। सब सिधि सुलभ जपत जिसु नामू।। 
मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवउ सो दसरथ अजिर बिहारी।।
करि प्रनाम रामहि त्रिपुरारी। हरषि सुधा सम गिरा उचारी।।
धन्य धन्य गिरिराजकुमारी। तुम्ह समान नहिं कोउ उपकारी।।
पूँछेहु रघुपति कथा प्रसंगा। सकल लोक जग पावनि गंगा।।
तुम्ह रघुबीर चरन अनुरागी। कीन्हहु प्रस्न जगत हित लागी।।

दोहा/सोरठा
रामकृपा तें पारबति सपनेहुँ तव मन माहिं।
सोक मोह संदेह भ्रम मम बिचार कछु नाहिं।।112।।

Pages

ramcharitmanas

1.112

चौपाई
झूठेउ सत्य जाहि बिनु जानें। जिमि भुजंग बिनु रजु पहिचानें।। 
जेहि जानें जग जाइ हेराई। जागें जथा सपन भ्रम जाई।।
बंदउँ बालरूप सोई रामू। सब सिधि सुलभ जपत जिसु नामू।। 
मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवउ सो दसरथ अजिर बिहारी।।
करि प्रनाम रामहि त्रिपुरारी। हरषि सुधा सम गिरा उचारी।।
धन्य धन्य गिरिराजकुमारी। तुम्ह समान नहिं कोउ उपकारी।।
पूँछेहु रघुपति कथा प्रसंगा। सकल लोक जग पावनि गंगा।।
तुम्ह रघुबीर चरन अनुरागी। कीन्हहु प्रस्न जगत हित लागी।।

दोहा/सोरठा
रामकृपा तें पारबति सपनेहुँ तव मन माहिं।
सोक मोह संदेह भ्रम मम बिचार कछु नाहिं।।112।।

Pages