चौपाई
 निज भ्रम नहिं समुझहिं अग्यानी। प्रभु पर मोह धरहिं जड़ प्रानी।। 
 जथा गगन घन पटल निहारी। झाँपेउ मानु कहहिं कुबिचारी।।
 चितव जो लोचन अंगुलि लाएँ। प्रगट जुगल ससि तेहि के भाएँ।। 
 उमा राम बिषइक अस मोहा। नभ तम धूम धूरि जिमि सोहा।।
 बिषय करन सुर जीव समेता। सकल एक तें एक सचेता।। 
 सब कर परम प्रकासक जोई। राम अनादि अवधपति सोई।।
 जगत प्रकास्य प्रकासक रामू। मायाधीस ग्यान गुन धामू।। 
 जासु सत्यता तें जड माया। भास सत्य इव मोह सहाया।।
दोहा/सोरठा
रजत सीप महुँ मास जिमि जथा भानु कर बारि। 
 जदपि मृषा तिहुँ काल सोइ भ्रम न सकइ कोउ टारि।।117।।
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ramcharitmanas
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  चौपाई
 निज भ्रम नहिं समुझहिं अग्यानी। प्रभु पर मोह धरहिं जड़ प्रानी।। 
 जथा गगन घन पटल निहारी। झाँपेउ मानु कहहिं कुबिचारी।।
 चितव जो लोचन अंगुलि लाएँ। प्रगट जुगल ससि तेहि के भाएँ।। 
 उमा राम बिषइक अस मोहा। नभ तम धूम धूरि जिमि सोहा।।
 बिषय करन सुर जीव समेता। सकल एक तें एक सचेता।। 
 सब कर परम प्रकासक जोई। राम अनादि अवधपति सोई।।
 जगत प्रकास्य प्रकासक रामू। मायाधीस ग्यान गुन धामू।। 
 जासु सत्यता तें जड माया। भास सत्य इव मोह सहाया।।
दोहा/सोरठा
रजत सीप महुँ मास जिमि जथा भानु कर बारि। 
 जदपि मृषा तिहुँ काल सोइ भ्रम न सकइ कोउ टारि।।117।।
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