Two Book View

ramcharitmanas

1.304

चौपाई
मंगल सगुन सुगम सब ताकें। सगुन ब्रह्म सुंदर सुत जाकें।।
राम सरिस बरु दुलहिनि सीता। समधी दसरथु जनकु पुनीता।।
सुनि अस ब्याहु सगुन सब नाचे। अब कीन्हे बिरंचि हम साँचे।।
एहि बिधि कीन्ह बरात पयाना। हय गय गाजहिं हने निसाना।।
आवत जानि भानुकुल केतू। सरितन्हि जनक बँधाए सेतू।।
बीच बीच बर बास बनाए। सुरपुर सरिस संपदा छाए।।
असन सयन बर बसन सुहाए। पावहिं सब निज निज मन भाए।।
नित नूतन सुख लखि अनुकूले। सकल बरातिन्ह मंदिर भूले।।

दोहा/सोरठा
आवत जानि बरात बर सुनि गहगहे निसान।
सजि गज रथ पदचर तुरग लेन चले अगवान।।304।।

Pages

ramcharitmanas

1.304

चौपाई
मंगल सगुन सुगम सब ताकें। सगुन ब्रह्म सुंदर सुत जाकें।।
राम सरिस बरु दुलहिनि सीता। समधी दसरथु जनकु पुनीता।।
सुनि अस ब्याहु सगुन सब नाचे। अब कीन्हे बिरंचि हम साँचे।।
एहि बिधि कीन्ह बरात पयाना। हय गय गाजहिं हने निसाना।।
आवत जानि भानुकुल केतू। सरितन्हि जनक बँधाए सेतू।।
बीच बीच बर बास बनाए। सुरपुर सरिस संपदा छाए।।
असन सयन बर बसन सुहाए। पावहिं सब निज निज मन भाए।।
नित नूतन सुख लखि अनुकूले। सकल बरातिन्ह मंदिर भूले।।

दोहा/सोरठा
आवत जानि बरात बर सुनि गहगहे निसान।
सजि गज रथ पदचर तुरग लेन चले अगवान।।304।।

Pages