चौपाई
सुक सारिका जानकी ज्याए। कनक पिंजरन्हि राखि पढ़ाए।।
ब्याकुल कहहिं कहाँ बैदेही। सुनि धीरजु परिहरइ न केही।।
भए बिकल खग मृग एहि भाँति। मनुज दसा कैसें कहि जाती।।
बंधु समेत जनकु तब आए। प्रेम उमगि लोचन जल छाए।।
सीय बिलोकि धीरता भागी। रहे कहावत परम बिरागी।।
लीन्हि राँय उर लाइ जानकी। मिटी महामरजाद ग्यान की।।
समुझावत सब सचिव सयाने। कीन्ह बिचारु न अवसर जाने।।
बारहिं बार सुता उर लाई। सजि सुंदर पालकीं मगाई।।
दोहा/सोरठा
प्रेमबिबस परिवारु सबु जानि सुलगन नरेस।
कुँअरि चढ़ाई पालकिन्ह सुमिरे सिद्धि गनेस।।338।।
Two Book View
ramcharitmanas
1.338
Pages |
ramcharitmanas
1.338
चौपाई
सुक सारिका जानकी ज्याए। कनक पिंजरन्हि राखि पढ़ाए।।
ब्याकुल कहहिं कहाँ बैदेही। सुनि धीरजु परिहरइ न केही।।
भए बिकल खग मृग एहि भाँति। मनुज दसा कैसें कहि जाती।।
बंधु समेत जनकु तब आए। प्रेम उमगि लोचन जल छाए।।
सीय बिलोकि धीरता भागी। रहे कहावत परम बिरागी।।
लीन्हि राँय उर लाइ जानकी। मिटी महामरजाद ग्यान की।।
समुझावत सब सचिव सयाने। कीन्ह बिचारु न अवसर जाने।।
बारहिं बार सुता उर लाई। सजि सुंदर पालकीं मगाई।।
दोहा/सोरठा
प्रेमबिबस परिवारु सबु जानि सुलगन नरेस।
कुँअरि चढ़ाई पालकिन्ह सुमिरे सिद्धि गनेस।।338।।
Pages |