Two Book View

ramcharitmanas

1.75

चौपाई
अस तपु काहुँ न कीन्ह भवानी। भउ अनेक धीर मुनि ग्यानी।।
अब उर धरहु ब्रह्म बर बानी। सत्य सदा संतत सुचि जानी।।
आवै पिता बोलावन जबहीं। हठ परिहरि घर जाएहु तबहीं।।
मिलहिं तुम्हहि जब सप्त रिषीसा। जानेहु तब प्रमान बागीसा।।
सुनत गिरा बिधि गगन बखानी। पुलक गात गिरिजा हरषानी।।
उमा चरित सुंदर मैं गावा। सुनहु संभु कर चरित सुहावा।।
जब तें सती जाइ तनु त्यागा। तब सें सिव मन भयउ बिरागा।।
जपहिं सदा रघुनायक नामा। जहँ तहँ सुनहिं राम गुन ग्रामा।।

दोहा/सोरठा
चिदानन्द सुखधाम सिव बिगत मोह मद काम।
बिचरहिं महि धरि हृदयँ हरि सकल लोक अभिराम।।75।।

Pages

ramcharitmanas

1.75

चौपाई
अस तपु काहुँ न कीन्ह भवानी। भउ अनेक धीर मुनि ग्यानी।।
अब उर धरहु ब्रह्म बर बानी। सत्य सदा संतत सुचि जानी।।
आवै पिता बोलावन जबहीं। हठ परिहरि घर जाएहु तबहीं।।
मिलहिं तुम्हहि जब सप्त रिषीसा। जानेहु तब प्रमान बागीसा।।
सुनत गिरा बिधि गगन बखानी। पुलक गात गिरिजा हरषानी।।
उमा चरित सुंदर मैं गावा। सुनहु संभु कर चरित सुहावा।।
जब तें सती जाइ तनु त्यागा। तब सें सिव मन भयउ बिरागा।।
जपहिं सदा रघुनायक नामा। जहँ तहँ सुनहिं राम गुन ग्रामा।।

दोहा/सोरठा
चिदानन्द सुखधाम सिव बिगत मोह मद काम।
बिचरहिं महि धरि हृदयँ हरि सकल लोक अभिराम।।75।।

Pages