चौपाई
कतहुँ मुनिन्ह उपदेसहिं ग्याना। कतहुँ राम गुन करहिं बखाना।।
जदपि अकाम तदपि भगवाना। भगत बिरह दुख दुखित सुजाना।।
एहि बिधि गयउ कालु बहु बीती। नित नै होइ राम पद प्रीती।।
नैमु प्रेमु संकर कर देखा। अबिचल हृदयँ भगति कै रेखा।।
प्रगटै रामु कृतग्य कृपाला। रूप सील निधि तेज बिसाला।।
बहु प्रकार संकरहि सराहा। तुम्ह बिनु अस ब्रतु को निरबाहा।।
बहुबिधि राम सिवहि समुझावा। पारबती कर जन्मु सुनावा।।
अति पुनीत गिरिजा कै करनी। बिस्तर सहित कृपानिधि बरनी।।
दोहा/सोरठा
अब बिनती मम सुनेहु सिव जौं मो पर निज नेहु।
जाइ बिबाहहु सैलजहि यह मोहि मागें देहु।।76।।
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ramcharitmanas
1.76
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चौपाई
कतहुँ मुनिन्ह उपदेसहिं ग्याना। कतहुँ राम गुन करहिं बखाना।।
जदपि अकाम तदपि भगवाना। भगत बिरह दुख दुखित सुजाना।।
एहि बिधि गयउ कालु बहु बीती। नित नै होइ राम पद प्रीती।।
नैमु प्रेमु संकर कर देखा। अबिचल हृदयँ भगति कै रेखा।।
प्रगटै रामु कृतग्य कृपाला। रूप सील निधि तेज बिसाला।।
बहु प्रकार संकरहि सराहा। तुम्ह बिनु अस ब्रतु को निरबाहा।।
बहुबिधि राम सिवहि समुझावा। पारबती कर जन्मु सुनावा।।
अति पुनीत गिरिजा कै करनी। बिस्तर सहित कृपानिधि बरनी।।
दोहा/सोरठा
अब बिनती मम सुनेहु सिव जौं मो पर निज नेहु।
जाइ बिबाहहु सैलजहि यह मोहि मागें देहु।।76।।
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