Two Book View

ramcharitmanas

1.77

चौपाई
कह सिव जदपि उचित अस नाहीं। नाथ बचन पुनि मेटि न जाहीं।।
सिर धरि आयसु करिअ तुम्हारा। परम धरमु यह नाथ हमारा।।
मातु पिता गुर प्रभु कै बानी। बिनहिं बिचार करिअ सुभ जानी।।
तुम्ह सब भाँति परम हितकारी। अग्या सिर पर नाथ तुम्हारी।।
प्रभु तोषेउ सुनि संकर बचना। भक्ति बिबेक धर्म जुत रचना।।
कह प्रभु हर तुम्हार पन रहेऊ। अब उर राखेहु जो हम कहेऊ।।
अंतरधान भए अस भाषी। संकर सोइ मूरति उर राखी।।
तबहिं सप्तरिषि सिव पहिं आए। बोले प्रभु अति बचन सुहाए।।

दोहा/सोरठा
पारबती पहिं जाइ तुम्ह प्रेम परिच्छा लेहु।
गिरिहि प्रेरि पठएहु भवन दूरि करेहु संदेहु।।77।।

Pages

ramcharitmanas

1.77

चौपाई
कह सिव जदपि उचित अस नाहीं। नाथ बचन पुनि मेटि न जाहीं।।
सिर धरि आयसु करिअ तुम्हारा। परम धरमु यह नाथ हमारा।।
मातु पिता गुर प्रभु कै बानी। बिनहिं बिचार करिअ सुभ जानी।।
तुम्ह सब भाँति परम हितकारी। अग्या सिर पर नाथ तुम्हारी।।
प्रभु तोषेउ सुनि संकर बचना। भक्ति बिबेक धर्म जुत रचना।।
कह प्रभु हर तुम्हार पन रहेऊ। अब उर राखेहु जो हम कहेऊ।।
अंतरधान भए अस भाषी। संकर सोइ मूरति उर राखी।।
तबहिं सप्तरिषि सिव पहिं आए। बोले प्रभु अति बचन सुहाए।।

दोहा/सोरठा
पारबती पहिं जाइ तुम्ह प्रेम परिच्छा लेहु।
गिरिहि प्रेरि पठएहु भवन दूरि करेहु संदेहु।।77।।

Pages