Two Book View

ramcharitmanas

1.86

चौपाई
उभय घरी अस कौतुक भयऊ। जौ लगि कामु संभु पहिं गयऊ।।
सिवहि बिलोकि ससंकेउ मारू। भयउ जथाथिति सबु संसारू।।
भए तुरत सब जीव सुखारे। जिमि मद उतरि गएँ मतवारे।।
रुद्रहि देखि मदन भय माना। दुराधरष दुर्गम भगवाना।।
फिरत लाज कछु करि नहिं जाई। मरनु ठानि मन रचेसि उपाई।।
प्रगटेसि तुरत रुचिर रितुराजा। कुसुमित नव तरु राजि बिराजा।।
बन उपबन बापिका तड़ागा। परम सुभग सब दिसा बिभागा।।
जहँ तहँ जनु उमगत अनुरागा। देखि मुएहुँ मन मनसिज जागा।।

छंद
जागइ मनोभव मुएहुँ मन बन सुभगता न परै कही।
सीतल सुगंध सुमंद मारुत मदन अनल सखा सही।।
बिकसे सरन्हि बहु कंज गुंजत पुंज मंजुल मधुकरा।
कलहंस पिक सुक सरस रव करि गान नाचहिं अपछरा।।

दोहा/सोरठा
सकल कला करि कोटि बिधि हारेउ सेन समेत।
चली न अचल समाधि सिव कोपेउ हृदयनिकेत।।86।।

Pages

ramcharitmanas

1.86

चौपाई
उभय घरी अस कौतुक भयऊ। जौ लगि कामु संभु पहिं गयऊ।।
सिवहि बिलोकि ससंकेउ मारू। भयउ जथाथिति सबु संसारू।।
भए तुरत सब जीव सुखारे। जिमि मद उतरि गएँ मतवारे।।
रुद्रहि देखि मदन भय माना। दुराधरष दुर्गम भगवाना।।
फिरत लाज कछु करि नहिं जाई। मरनु ठानि मन रचेसि उपाई।।
प्रगटेसि तुरत रुचिर रितुराजा। कुसुमित नव तरु राजि बिराजा।।
बन उपबन बापिका तड़ागा। परम सुभग सब दिसा बिभागा।।
जहँ तहँ जनु उमगत अनुरागा। देखि मुएहुँ मन मनसिज जागा।।

छंद
जागइ मनोभव मुएहुँ मन बन सुभगता न परै कही।
सीतल सुगंध सुमंद मारुत मदन अनल सखा सही।।
बिकसे सरन्हि बहु कंज गुंजत पुंज मंजुल मधुकरा।
कलहंस पिक सुक सरस रव करि गान नाचहिं अपछरा।।

दोहा/सोरठा
सकल कला करि कोटि बिधि हारेउ सेन समेत।
चली न अचल समाधि सिव कोपेउ हृदयनिकेत।।86।।

Pages