Two Book View

ramcharitmanas

1.87

चौपाई
देखि रसाल बिटप बर साखा। तेहि पर चढ़ेउ मदनु मन माखा।।
सुमन चाप निज सर संधाने। अति रिस ताकि श्रवन लगि ताने।।
छाड़े बिषम बिसिख उर लागे। छुटि समाधि संभु तब जागे।।
भयउ ईस मन छोभु बिसेषी। नयन उघारि सकल दिसि देखी।।
सौरभ पल्लव मदनु बिलोका। भयउ कोपु कंपेउ त्रैलोका।।
तब सिवँ तीसर नयन उघारा। चितवत कामु भयउ जरि छारा।।
हाहाकार भयउ जग भारी। डरपे सुर भए असुर सुखारी।।
समुझि कामसुखु सोचहिं भोगी। भए अकंटक साधक जोगी।।

छंद
जोगि अकंटक भए पति गति सुनत रति मुरुछित भई।
रोदति बदति बहु भाँति करुना करति संकर पहिं गई।
अति प्रेम करि बिनती बिबिध बिधि जोरि कर सन्मुख रही।
प्रभु आसुतोष कृपाल सिव अबला निरखि बोले सही।।

दोहा/सोरठा
अब तें रति तव नाथ कर होइहि नामु अनंगु।
बिनु बपु ब्यापिहि सबहि पुनि सुनु निज मिलन प्रसंगु।।87।।

Pages

ramcharitmanas

1.87

चौपाई
देखि रसाल बिटप बर साखा। तेहि पर चढ़ेउ मदनु मन माखा।।
सुमन चाप निज सर संधाने। अति रिस ताकि श्रवन लगि ताने।।
छाड़े बिषम बिसिख उर लागे। छुटि समाधि संभु तब जागे।।
भयउ ईस मन छोभु बिसेषी। नयन उघारि सकल दिसि देखी।।
सौरभ पल्लव मदनु बिलोका। भयउ कोपु कंपेउ त्रैलोका।।
तब सिवँ तीसर नयन उघारा। चितवत कामु भयउ जरि छारा।।
हाहाकार भयउ जग भारी। डरपे सुर भए असुर सुखारी।।
समुझि कामसुखु सोचहिं भोगी। भए अकंटक साधक जोगी।।

छंद
जोगि अकंटक भए पति गति सुनत रति मुरुछित भई।
रोदति बदति बहु भाँति करुना करति संकर पहिं गई।
अति प्रेम करि बिनती बिबिध बिधि जोरि कर सन्मुख रही।
प्रभु आसुतोष कृपाल सिव अबला निरखि बोले सही।।

दोहा/सोरठा
अब तें रति तव नाथ कर होइहि नामु अनंगु।
बिनु बपु ब्यापिहि सबहि पुनि सुनु निज मिलन प्रसंगु।।87।।

Pages