Two Book View

ramcharitmanas

1.88

चौपाई
जब जदुबंस कृष्न अवतारा। होइहि हरन महा महिभारा।।
कृष्न तनय होइहि पति तोरा। बचनु अन्यथा होइ न मोरा।।
रति गवनी सुनि संकर बानी। कथा अपर अब कहउँ बखानी।।
देवन्ह समाचार सब पाए। ब्रह्मादिक बैकुंठ सिधाए।।
सब सुर बिष्नु बिरंचि समेता। गए जहाँ सिव कृपानिकेता।।
पृथक पृथक तिन्ह कीन्हि प्रसंसा। भए प्रसन्न चंद्र अवतंसा।।
बोले कृपासिंधु बृषकेतू। कहहु अमर आए केहि हेतू।।
कह बिधि तुम्ह प्रभु अंतरजामी। तदपि भगति बस बिनवउँ स्वामी।।

दोहा/सोरठा
सकल सुरन्ह के हृदयँ अस संकर परम उछाहु।
निज नयनन्हि देखा चहहिं नाथ तुम्हार बिबाहु।।88।।

Pages

ramcharitmanas

1.88

चौपाई
जब जदुबंस कृष्न अवतारा। होइहि हरन महा महिभारा।।
कृष्न तनय होइहि पति तोरा। बचनु अन्यथा होइ न मोरा।।
रति गवनी सुनि संकर बानी। कथा अपर अब कहउँ बखानी।।
देवन्ह समाचार सब पाए। ब्रह्मादिक बैकुंठ सिधाए।।
सब सुर बिष्नु बिरंचि समेता। गए जहाँ सिव कृपानिकेता।।
पृथक पृथक तिन्ह कीन्हि प्रसंसा। भए प्रसन्न चंद्र अवतंसा।।
बोले कृपासिंधु बृषकेतू। कहहु अमर आए केहि हेतू।।
कह बिधि तुम्ह प्रभु अंतरजामी। तदपि भगति बस बिनवउँ स्वामी।।

दोहा/सोरठा
सकल सुरन्ह के हृदयँ अस संकर परम उछाहु।
निज नयनन्हि देखा चहहिं नाथ तुम्हार बिबाहु।।88।।

Pages