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2.3

श्लोक
মূলং ধর্মতরোর্বিবেকজলধেঃ পূর্ণেন্দুমানন্দদং
বৈরাগ্যাম্বুজভাস্করং হ্যঘঘনধ্বান্তাপহং তাপহম্৷
মোহাম্ভোধরপূগপাটনবিধৌ স্বঃসম্ভবং শঙ্করং
বন্দে ব্রহ্মকুলং কলংকশমনং শ্রীরামভূপপ্রিযম্৷৷1৷৷
সান্দ্রানন্দপযোদসৌভগতনুং পীতাম্বরং সুন্দরং
পাণৌ বাণশরাসনং কটিলসত্তূণীরভারং বরম্
রাজীবাযতলোচনং ধৃতজটাজূটেন সংশোভিতং
সীতালক্ষ্মণসংযুতং পথিগতং রামাভিরামং ভজে৷৷2৷৷

दोहा/सोरठा
উমা রাম গুন গূঢ় পংডিত মুনি পাবহিং বিরতি৷
পাবহিং মোহ বিমূঢ় জে হরি বিমুখ ন ধর্ম রতি৷৷

2.2

श्लोक
যস্যাঙ্কে চ বিভাতি ভূধরসুতা দেবাপগা মস্তকে
ভালে বালবিধুর্গলে চ গরলং যস্যোরসি ব্যালরাট্৷
সোযং ভূতিবিভূষণঃ সুরবরঃ সর্বাধিপঃ সর্বদা
শর্বঃ সর্বগতঃ শিবঃ শশিনিভঃ শ্রীশঙ্করঃ পাতু মাম্৷৷1৷৷
প্রসন্নতাং যা ন গতাভিষেকতস্তথা ন মম্লে বনবাসদুঃখতঃ৷
মুখাম্বুজশ্রী রঘুনন্দনস্য মে সদাস্তু সা মঞ্জুলমংগলপ্রদা৷৷2৷৷
নীলাম্বুজশ্যামলকোমলাঙ্গং সীতাসমারোপিতবামভাগম্৷
পাণৌ মহাসাযকচারুচাপং নমামি রামং রঘুবংশনাথম্৷৷3৷৷

2.1

श्लोक
বর্ণানামর্থসংঘানাং রসানাং ছন্দসামপি৷
মঙ্গলানাং চ কর্ত্তারৌ বন্দে বাণীবিনাযকৌ৷৷1৷৷
ভবানীশঙ্করৌ বন্দে শ্রদ্ধাবিশ্বাসরূপিণৌ৷
যাভ্যাং বিনা ন পশ্যন্তি সিদ্ধাঃস্বান্তঃস্থমীশ্বরম্৷৷2৷৷
বন্দে বোধমযং নিত্যং গুরুং শঙ্কররূপিণম্৷
যমাশ্রিতো হি বক্রোপি চন্দ্রঃ সর্বত্র বন্দ্যতে৷৷3৷৷
সীতারামগুণগ্রামপুণ্যারণ্যবিহারিণৌ৷
বন্দে বিশুদ্ধবিজ্ঞানৌ কবীশ্বরকপীশ্বরৌ৷৷4৷৷
উদ্ভবস্থিতিসংহারকারিণীং ক্লেশহারিণীম্৷
সর্বশ্রেযস্করীং সীতাং নতোহং রামবল্লভাম্৷৷5৷৷
যন্মাযাবশবর্তিং বিশ্বমখিলং ব্রহ্মাদিদেবাসুরা

1.7

श्लोक
केकीकण्ठाभनीलं सुरवरविलसद्विप्रपादाब्जचिह्नं
शोभाढ्यं पीतवस्त्रं सरसिजनयनं सर्वदा सुप्रसन्नम्।
पाणौ नाराचचापं कपिनिकरयुतं बन्धुना सेव्यमानं
नौमीड्यं जानकीशं रघुवरमनिशं पुष्पकारूढरामम्।।1।।
कोसलेन्द्रपदकञ्जमञ्जुलौ कोमलावजमहेशवन्दितौ।
जानकीकरसरोजलालितौ चिन्तकस्य मनभृङ्गसड्गिनौ।।2।।
कुन्दइन्दुदरगौरसुन्दरं अम्बिकापतिमभीष्टसिद्धिदम्।
कारुणीककलकञ्जलोचनं नौमि शंकरमनंगमोचनम्।।3।।

1.6

श्लोक
रामं कामारिसेव्यं भवभयहरणं कालमत्तेभसिंहं
योगीन्द्रं ज्ञानगम्यं गुणनिधिमजितं निर्गुणं निर्विकारम्।
मायातीतं सुरेशं खलवधनिरतं ब्रह्मवृन्दैकदेवं
वन्दे कन्दावदातं सरसिजनयनं देवमुर्वीशरूपम्।।1।।
शंखेन्द्वाभमतीवसुन्दरतनुं शार्दूलचर्माम्बरं
कालव्यालकरालभूषणधरं गंगाशशांकप्रियम्।
काशीशं कलिकल्मषौघशमनं कल्याणकल्पद्रुमं
नौमीड्यं गिरिजापतिं गुणनिधिं कन्दर्पहं शङ्करम्।।2।।
यो ददाति सतां शम्भुः कैवल्यमपि दुर्लभम्।
खलानां दण्डकृद्योऽसौ शङ्करः शं तनोतु मे।।3।।

1.5

श्लोक
शान्तं शाश्वतमप्रमेयमनघं निर्वाणशान्तिप्रदं
ब्रह्माशम्भुफणीन्द्रसेव्यमनिशं वेदान्तवेद्यं विभुम् ।
रामाख्यं जगदीश्वरं सुरगुरुं मायामनुष्यं हरिं
वन्देऽहं करुणाकरं रघुवरं भूपालचूड़ामणिम्।।1।।
नान्या स्पृहा रघुपते हृदयेऽस्मदीये
सत्यं वदामि च भवानखिलान्तरात्मा।
भक्तिं प्रयच्छ रघुपुङ्गव निर्भरां मे
कामादिदोषरहितं कुरु मानसं च।।2।।
अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं
दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम्।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं
रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि।।3।।

1.4

श्लोक
कुन्देन्दीवरसुन्दरावतिबलौ विज्ञानधामावुभौ
शोभाढ्यौ वरधन्विनौ श्रुतिनुतौ गोविप्रवृन्दप्रियौ।
मायामानुषरूपिणौ रघुवरौ सद्धर्मवर्मौं हितौ
सीतान्वेषणतत्परौ पथिगतौ भक्तिप्रदौ तौ हि नः।।1।।
ब्रह्माम्भोधिसमुद्भवं कलिमलप्रध्वंसनं चाव्ययं
श्रीमच्छम्भुमुखेन्दुसुन्दरवरे संशोभितं सर्वदा।
संसारामयभेषजं सुखकरं श्रीजानकीजीवनं
धन्यास्ते कृतिनः पिबन्ति सततं श्रीरामनामामृतम्।।2।।

1.3

श्लोक
मूलं धर्मतरोर्विवेकजलधेः पूर्णेन्दुमानन्ददं
वैराग्याम्बुजभास्करं ह्यघघनध्वान्तापहं तापहम्।
मोहाम्भोधरपूगपाटनविधौ स्वःसम्भवं शङ्करं
वन्दे ब्रह्मकुलं कलंकशमनं श्रीरामभूपप्रियम्।।1।।
सान्द्रानन्दपयोदसौभगतनुं पीताम्बरं सुन्दरं
पाणौ बाणशरासनं कटिलसत्तूणीरभारं वरम्
राजीवायतलोचनं धृतजटाजूटेन संशोभितं
सीतालक्ष्मणसंयुतं पथिगतं रामाभिरामं भजे।।2।।

दोहा/सोरठा
उमा राम गुन गूढ़ पंडित मुनि पावहिं बिरति।
पावहिं मोह बिमूढ़ जे हरि बिमुख न धर्म रति।।

1.2

श्लोक
यस्याङ्के च विभाति भूधरसुता देवापगा मस्तके
भाले बालविधुर्गले च गरलं यस्योरसि व्यालराट्।
सोऽयं भूतिविभूषणः सुरवरः सर्वाधिपः सर्वदा
शर्वः सर्वगतः शिवः शशिनिभः श्रीशङ्करः पातु माम्।।1।।
प्रसन्नतां या न गताभिषेकतस्तथा न मम्ले वनवासदुःखतः।
मुखाम्बुजश्री रघुनन्दनस्य मे सदास्तु सा मञ्जुलमंगलप्रदा।।2।।
नीलाम्बुजश्यामलकोमलाङ्गं सीतासमारोपितवामभागम्।
पाणौ महासायकचारुचापं नमामि रामं रघुवंशनाथम्।।3।।

दोहा/सोरठा

1.1

श्लोक
वर्णानामर्थसंघानां रसानां छन्दसामपि।
मङ्गलानां च कर्त्तारौ वन्दे वाणीविनायकौ।।1।।
भवानीशङ्करौ वन्दे श्रद्धाविश्वासरूपिणौ।
याभ्यां विना न पश्यन्ति सिद्धाःस्वान्तःस्थमीश्वरम्।।2।।
वन्दे बोधमयं नित्यं गुरुं शङ्कररूपिणम्।
यमाश्रितो हि वक्रोऽपि चन्द्रः सर्वत्र वन्द्यते।।3।।
सीतारामगुणग्रामपुण्यारण्यविहारिणौ।
वन्दे विशुद्धविज्ञानौ कबीश्वरकपीश्वरौ।।4।।
उद्भवस्थितिसंहारकारिणीं क्लेशहारिणीम्।
सर्वश्रेयस्करीं सीतां नतोऽहं रामवल्लभाम्।।5।।
यन्मायावशवर्तिं विश्वमखिलं ब्रह्मादिदेवासुरा

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