114

3.2.114

चौपाई
સીતા લખન સહિત રઘુરાઈ। ગા નિકટ જબ નિકસહિં જાઈ।।
સુનિ સબ બાલ બૃદ્ધ નર નારી। ચલહિં તુરત ગૃહકાજુ બિસારી।।
રામ લખન સિય રૂપ નિહારી। પાઇ નયનફલુ હોહિં સુખારી।।
સજલ બિલોચન પુલક સરીરા। સબ ભએ મગન દેખિ દોઉ બીરા।।
બરનિ ન જાઇ દસા તિન્હ કેરી। લહિ જનુ રંકન્હ સુરમનિ ઢેરી।।
એકન્હ એક બોલિ સિખ દેહીં। લોચન લાહુ લેહુ છન એહીં।।
રામહિ દેખિ એક અનુરાગે। ચિતવત ચલે જાહિં સ લાગે।।
એક નયન મગ છબિ ઉર આની। હોહિં સિથિલ તન મન બર બાની।।

3.1.114

चौपाई
રામકથા સુંદર કર તારી। સંસય બિહગ ઉડાવનિહારી।।
રામકથા કલિ બિટપ કુઠારી। સાદર સુનુ ગિરિરાજકુમારી।।
રામ નામ ગુન ચરિત સુહાએ। જનમ કરમ અગનિત શ્રુતિ ગાએ।।
જથા અનંત રામ ભગવાના। તથા કથા કીરતિ ગુન નાના।।
તદપિ જથા શ્રુત જસિ મતિ મોરી। કહિહઉદેખિ પ્રીતિ અતિ તોરી।।
ઉમા પ્રસ્ન તવ સહજ સુહાઈ। સુખદ સંતસંમત મોહિ ભાઈ।।
એક બાત નહિ મોહિ સોહાની। જદપિ મોહ બસ કહેહુ ભવાની।।
તુમ જો કહા રામ કોઉ આના। જેહિ શ્રુતિ ગાવ ધરહિં મુનિ ધ્યાના।।

2.7.114

चौपाई
কাল কর্ম গুন দোষ সুভাঊ৷ কছু দুখ তুম্হহি ন ব্যাপিহি কাঊ৷৷
রাম রহস্য ললিত বিধি নানা৷ গুপ্ত প্রগট ইতিহাস পুরানা৷৷
বিনু শ্রম তুম্হ জানব সব সোঊ৷ নিত নব নেহ রাম পদ হোঊ৷৷
জো ইচ্ছা করিহহু মন মাহীং৷ হরি প্রসাদ কছু দুর্লভ নাহীং৷৷
সুনি মুনি আসিষ সুনু মতিধীরা৷ ব্রহ্মগিরা ভই গগন গীরা৷৷
এবমস্তু তব বচ মুনি গ্যানী৷ যহ মম ভগত কর্ম মন বানী৷৷
সুনি নভগিরা হরষ মোহি ভযঊ৷ প্রেম মগন সব সংসয গযঊ৷৷
করি বিনতী মুনি আযসু পাঈ৷ পদ সরোজ পুনি পুনি সিরু নাঈ৷৷
হরষ সহিত এহিং আশ্রম আযউ প্রভু প্রসাদ দুর্লভ বর পাযউ৷

2.6.114

चौपाई
সুনু সুরপতি কপি ভালু হমারে৷ পরে ভূমি নিসচরন্হি জে মারে৷৷
মম হিত লাগি তজে ইন্হ প্রানা৷ সকল জিআউ সুরেস সুজানা৷৷
সুনু খগেস প্রভু কৈ যহ বানী৷ অতি অগাধ জানহিং মুনি গ্যানী৷৷
প্রভু সক ত্রিভুঅন মারি জিআঈ৷ কেবল সক্রহি দীন্হি বড়াঈ৷৷
সুধা বরষি কপি ভালু জিআএ৷ হরষি উঠে সব প্রভু পহিং আএ৷৷
সুধাবৃষ্টি ভৈ দুহু দল ঊপর৷ জিএ ভালু কপি নহিং রজনীচর৷৷
রামাকার ভএ তিন্হ কে মন৷ মুক্ত ভএ ছূটে ভব বংধন৷৷
সুর অংসিক সব কপি অরু রীছা৷ জিএ সকল রঘুপতি কীং ঈছা৷৷
রাম সরিস কো দীন হিতকারী৷ কীন্হে মুকুত নিসাচর ঝারী৷৷

2.2.114

चौपाई
সীতা লখন সহিত রঘুরাঈ৷ গা নিকট জব নিকসহিং জাঈ৷৷
সুনি সব বাল বৃদ্ধ নর নারী৷ চলহিং তুরত গৃহকাজু বিসারী৷৷
রাম লখন সিয রূপ নিহারী৷ পাই নযনফলু হোহিং সুখারী৷৷
সজল বিলোচন পুলক সরীরা৷ সব ভএ মগন দেখি দোউ বীরা৷৷
বরনি ন জাই দসা তিন্হ কেরী৷ লহি জনু রংকন্হ সুরমনি ঢেরী৷৷
একন্হ এক বোলি সিখ দেহীং৷ লোচন লাহু লেহু ছন এহীং৷৷
রামহি দেখি এক অনুরাগে৷ চিতবত চলে জাহিং স লাগে৷৷
এক নযন মগ ছবি উর আনী৷ হোহিং সিথিল তন মন বর বানী৷৷

2.1.114

चौपाई
রামকথা সুংদর কর তারী৷ সংসয বিহগ উডাবনিহারী৷৷
রামকথা কলি বিটপ কুঠারী৷ সাদর সুনু গিরিরাজকুমারী৷৷
রাম নাম গুন চরিত সুহাএ৷ জনম করম অগনিত শ্রুতি গাএ৷৷
জথা অনংত রাম ভগবানা৷ তথা কথা কীরতি গুন নানা৷৷
তদপি জথা শ্রুত জসি মতি মোরী৷ কহিহউদেখি প্রীতি অতি তোরী৷৷
উমা প্রস্ন তব সহজ সুহাঈ৷ সুখদ সংতসংমত মোহি ভাঈ৷৷
এক বাত নহি মোহি সোহানী৷ জদপি মোহ বস কহেহু ভবানী৷৷
তুম জো কহা রাম কোউ আনা৷ জেহি শ্রুতি গাব ধরহিং মুনি ধ্যানা৷৷

1.7.114

चौपाई
काल कर्म गुन दोष सुभाऊ। कछु दुख तुम्हहि न ब्यापिहि काऊ।।
राम रहस्य ललित बिधि नाना। गुप्त प्रगट इतिहास पुराना।।
बिनु श्रम तुम्ह जानब सब सोऊ। नित नव नेह राम पद होऊ।।
जो इच्छा करिहहु मन माहीं। हरि प्रसाद कछु दुर्लभ नाहीं।।
सुनि मुनि आसिष सुनु मतिधीरा। ब्रह्मगिरा भइ गगन गँभीरा।।
एवमस्तु तव बच मुनि ग्यानी। यह मम भगत कर्म मन बानी।।
सुनि नभगिरा हरष मोहि भयऊ। प्रेम मगन सब संसय गयऊ।।
करि बिनती मुनि आयसु पाई। पद सरोज पुनि पुनि सिरु नाई।।
हरष सहित एहिं आश्रम आयउँ। प्रभु प्रसाद दुर्लभ बर पायउँ।।

1.6.114

चौपाई
सुनु सुरपति कपि भालु हमारे। परे भूमि निसचरन्हि जे मारे।।
मम हित लागि तजे इन्ह प्राना। सकल जिआउ सुरेस सुजाना।।
सुनु खगेस प्रभु कै यह बानी। अति अगाध जानहिं मुनि ग्यानी।।
प्रभु सक त्रिभुअन मारि जिआई। केवल सक्रहि दीन्हि बड़ाई।।
सुधा बरषि कपि भालु जिआए। हरषि उठे सब प्रभु पहिं आए।।
सुधाबृष्टि भै दुहु दल ऊपर। जिए भालु कपि नहिं रजनीचर।।
रामाकार भए तिन्ह के मन। मुक्त भए छूटे भव बंधन।।
सुर अंसिक सब कपि अरु रीछा। जिए सकल रघुपति कीं ईछा।।
राम सरिस को दीन हितकारी। कीन्हे मुकुत निसाचर झारी।।

1.2.114

चौपाई
सीता लखन सहित रघुराई। गाँव निकट जब निकसहिं जाई।।
सुनि सब बाल बृद्ध नर नारी। चलहिं तुरत गृहकाजु बिसारी।।
राम लखन सिय रूप निहारी। पाइ नयनफलु होहिं सुखारी।।
सजल बिलोचन पुलक सरीरा। सब भए मगन देखि दोउ बीरा।।
बरनि न जाइ दसा तिन्ह केरी। लहि जनु रंकन्ह सुरमनि ढेरी।।
एकन्ह एक बोलि सिख देहीं। लोचन लाहु लेहु छन एहीं।।
रामहि देखि एक अनुरागे। चितवत चले जाहिं सँग लागे।।
एक नयन मग छबि उर आनी। होहिं सिथिल तन मन बर बानी।।

दोहा/सोरठा

1.1.114

चौपाई
रामकथा सुंदर कर तारी। संसय बिहग उडावनिहारी।।
रामकथा कलि बिटप कुठारी। सादर सुनु गिरिराजकुमारी।।
राम नाम गुन चरित सुहाए। जनम करम अगनित श्रुति गाए।।
जथा अनंत राम भगवाना। तथा कथा कीरति गुन नाना।।
तदपि जथा श्रुत जसि मति मोरी। कहिहउँ देखि प्रीति अति तोरी।।
उमा प्रस्न तव सहज सुहाई। सुखद संतसंमत मोहि भाई।।
एक बात नहि मोहि सोहानी। जदपि मोह बस कहेहु भवानी।।
तुम जो कहा राम कोउ आना। जेहि श्रुति गाव धरहिं मुनि ध्याना।।

दोहा/सोरठा

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