120

3.2.120

चौपाई
જૌં એ કંદ મૂલ ફલ ખાહીં। બાદિ સુધાદિ અસન જગ માહીં।।
એક કહહિં એ સહજ સુહાએ। આપુ પ્રગટ ભએ બિધિ ન બનાએ।।
જહલગિ બેદ કહી બિધિ કરની। શ્રવન નયન મન ગોચર બરની।।
દેખહુ ખોજિ ભુઅન દસ ચારી। કહઅસ પુરુષ કહાઅસિ નારી।।
ઇન્હહિ દેખિ બિધિ મનુ અનુરાગા। પટતર જોગ બનાવૈ લાગા।।
કીન્હ બહુત શ્રમ ઐક ન આએ। તેહિં ઇરિષા બન આનિ દુરાએ।।
એક કહહિં હમ બહુત ન જાનહિં। આપુહિ પરમ ધન્ય કરિ માનહિં।।
તે પુનિ પુન્યપુંજ હમ લેખે। જે દેખહિં દેખિહહિં જિન્હ દેખે।।

3.1.120

चौपाई
સસિ કર સમ સુનિ ગિરા તુમ્હારી। મિટા મોહ સરદાતપ ભારી।।
તુમ્હ કૃપાલ સબુ સંસઉ હરેઊ। રામ સ્વરુપ જાનિ મોહિ પરેઊ।।
નાથ કૃપાઅબ ગયઉ બિષાદા। સુખી ભયઉપ્રભુ ચરન પ્રસાદા।।
અબ મોહિ આપનિ કિંકરિ જાની। જદપિ સહજ જડ નારિ અયાની।।
પ્રથમ જો મૈં પૂછા સોઇ કહહૂ। જૌં મો પર પ્રસન્ન પ્રભુ અહહૂ।।
રામ બ્રહ્મ ચિનમય અબિનાસી। સર્બ રહિત સબ ઉર પુર બાસી।।
નાથ ધરેઉ નરતનુ કેહિ હેતૂ। મોહિ સમુઝાઇ કહહુ બૃષકેતૂ।।
ઉમા બચન સુનિ પરમ બિનીતા। રામકથા પર પ્રીતિ પુનીતા।।

2.7.120

चौपाई
কহেউগ্যান সিদ্ধাংত বুঝাঈ৷ সুনহু ভগতি মনি কৈ প্রভুতাঈ৷৷
রাম ভগতি চিংতামনি সুংদর৷ বসই গরুড় জাকে উর অংতর৷৷
পরম প্রকাস রূপ দিন রাতী৷ নহিং কছু চহিঅ দিআ ঘৃত বাতী৷৷
মোহ দরিদ্র নিকট নহিং আবা৷ লোভ বাত নহিং তাহি বুঝাবা৷৷
প্রবল অবিদ্যা তম মিটি জাঈ৷ হারহিং সকল সলভ সমুদাঈ৷৷
খল কামাদি নিকট নহিং জাহীং৷ বসই ভগতি জাকে উর মাহীং৷৷
গরল সুধাসম অরি হিত হোঈ৷ তেহি মনি বিনু সুখ পাব ন কোঈ৷৷
ব্যাপহিং মানস রোগ ন ভারী৷ জিন্হ কে বস সব জীব দুখারী৷৷
রাম ভগতি মনি উর বস জাকেং৷ দুখ লবলেস ন সপনেহুতাকেং৷৷

2.6.120

चौपाई
তুরত বিমান তহাচলি আবা৷ দংডক বন জহপরম সুহাবা৷৷
কুংভজাদি মুনিনাযক নানা৷ গএ রামু সব কেং অস্থানা৷৷
সকল রিষিন্হ সন পাই অসীসা৷ চিত্রকূট আএ জগদীসা৷৷
তহকরি মুনিন্হ কের সংতোষা৷ চলা বিমানু তহাতে চোখা৷৷
বহুরি রাম জানকিহি দেখাঈ৷ জমুনা কলি মল হরনি সুহাঈ৷৷
পুনি দেখী সুরসরী পুনীতা৷ রাম কহা প্রনাম করু সীতা৷৷
তীরথপতি পুনি দেখু প্রযাগা৷ নিরখত জন্ম কোটি অঘ ভাগা৷৷
দেখু পরম পাবনি পুনি বেনী৷ হরনি সোক হরি লোক নিসেনী৷৷
পুনি দেখু অবধপুরী অতি পাবনি৷ ত্রিবিধ তাপ ভব রোগ নসাবনি৷৷৷

2.2.120

चौपाई
জৌং এ কংদ মূল ফল খাহীং৷ বাদি সুধাদি অসন জগ মাহীং৷৷
এক কহহিং এ সহজ সুহাএ৷ আপু প্রগট ভএ বিধি ন বনাএ৷৷
জহলগি বেদ কহী বিধি করনী৷ শ্রবন নযন মন গোচর বরনী৷৷
দেখহু খোজি ভুঅন দস চারী৷ কহঅস পুরুষ কহাঅসি নারী৷৷
ইন্হহি দেখি বিধি মনু অনুরাগা৷ পটতর জোগ বনাবৈ লাগা৷৷
কীন্হ বহুত শ্রম ঐক ন আএ৷ তেহিং ইরিষা বন আনি দুরাএ৷৷
এক কহহিং হম বহুত ন জানহিং৷ আপুহি পরম ধন্য করি মানহিং৷৷
তে পুনি পুন্যপুংজ হম লেখে৷ জে দেখহিং দেখিহহিং জিন্হ দেখে৷৷

2.1.120

चौपाई
সসি কর সম সুনি গিরা তুম্হারী৷ মিটা মোহ সরদাতপ ভারী৷৷
তুম্হ কৃপাল সবু সংসউ হরেঊ৷ রাম স্বরুপ জানি মোহি পরেঊ৷৷
নাথ কৃপাঅব গযউ বিষাদা৷ সুখী ভযউপ্রভু চরন প্রসাদা৷৷
অব মোহি আপনি কিংকরি জানী৷ জদপি সহজ জড নারি অযানী৷৷
প্রথম জো মৈং পূছা সোই কহহূ৷ জৌং মো পর প্রসন্ন প্রভু অহহূ৷৷
রাম ব্রহ্ম চিনময অবিনাসী৷ সর্ব রহিত সব উর পুর বাসী৷৷
নাথ ধরেউ নরতনু কেহি হেতূ৷ মোহি সমুঝাই কহহু বৃষকেতূ৷৷
উমা বচন সুনি পরম বিনীতা৷ রামকথা পর প্রীতি পুনীতা৷৷

1.7.120

चौपाई
कहेउँ ग्यान सिद्धांत बुझाई। सुनहु भगति मनि कै प्रभुताई।।
राम भगति चिंतामनि सुंदर। बसइ गरुड़ जाके उर अंतर।।
परम प्रकास रूप दिन राती। नहिं कछु चहिअ दिआ घृत बाती।।
मोह दरिद्र निकट नहिं आवा। लोभ बात नहिं ताहि बुझावा।।
प्रबल अबिद्या तम मिटि जाई। हारहिं सकल सलभ समुदाई।।
खल कामादि निकट नहिं जाहीं। बसइ भगति जाके उर माहीं।।
गरल सुधासम अरि हित होई। तेहि मनि बिनु सुख पाव न कोई।।
ब्यापहिं मानस रोग न भारी। जिन्ह के बस सब जीव दुखारी।।
राम भगति मनि उर बस जाकें। दुख लवलेस न सपनेहुँ ताकें।।

1.6.120

चौपाई
तुरत बिमान तहाँ चलि आवा। दंडक बन जहँ परम सुहावा।।
कुंभजादि मुनिनायक नाना। गए रामु सब कें अस्थाना।।
सकल रिषिन्ह सन पाइ असीसा। चित्रकूट आए जगदीसा।।
तहँ करि मुनिन्ह केर संतोषा। चला बिमानु तहाँ ते चोखा।।
बहुरि राम जानकिहि देखाई। जमुना कलि मल हरनि सुहाई।।
पुनि देखी सुरसरी पुनीता। राम कहा प्रनाम करु सीता।।
तीरथपति पुनि देखु प्रयागा। निरखत जन्म कोटि अघ भागा।।
देखु परम पावनि पुनि बेनी। हरनि सोक हरि लोक निसेनी।।
पुनि देखु अवधपुरी अति पावनि। त्रिबिध ताप भव रोग नसावनि।।।

1.2.120

चौपाई
जौं ए कंद मूल फल खाहीं। बादि सुधादि असन जग माहीं।।
एक कहहिं ए सहज सुहाए। आपु प्रगट भए बिधि न बनाए।।
जहँ लगि बेद कही बिधि करनी। श्रवन नयन मन गोचर बरनी।।
देखहु खोजि भुअन दस चारी। कहँ अस पुरुष कहाँ असि नारी।।
इन्हहि देखि बिधि मनु अनुरागा। पटतर जोग बनावै लागा।।
कीन्ह बहुत श्रम ऐक न आए। तेहिं इरिषा बन आनि दुराए।।
एक कहहिं हम बहुत न जानहिं। आपुहि परम धन्य करि मानहिं।।
ते पुनि पुन्यपुंज हम लेखे। जे देखहिं देखिहहिं जिन्ह देखे।।

दोहा/सोरठा

1.1.120

चौपाई
ससि कर सम सुनि गिरा तुम्हारी। मिटा मोह सरदातप भारी।।
तुम्ह कृपाल सबु संसउ हरेऊ। राम स्वरुप जानि मोहि परेऊ।।
नाथ कृपाँ अब गयउ बिषादा। सुखी भयउँ प्रभु चरन प्रसादा।।
अब मोहि आपनि किंकरि जानी। जदपि सहज जड नारि अयानी।।
प्रथम जो मैं पूछा सोइ कहहू। जौं मो पर प्रसन्न प्रभु अहहू।।
राम ब्रह्म चिनमय अबिनासी। सर्ब रहित सब उर पुर बासी।।
नाथ धरेउ नरतनु केहि हेतू। मोहि समुझाइ कहहु बृषकेतू।।
उमा बचन सुनि परम बिनीता। रामकथा पर प्रीति पुनीता।।

दोहा/सोरठा

Pages

Subscribe to RSS - 120