122

4.1.122

चौपाई
ಸೋಇ ಜಸ ಗಾಇ ಭಗತ ಭವ ತರಹೀಂ. ಕೃಪಾಸಿಂಧು ಜನ ಹಿತ ತನು ಧರಹೀಂ..
ರಾಮ ಜನಮ ಕೇ ಹೇತು ಅನೇಕಾ. ಪರಮ ಬಿಚಿತ್ರ ಏಕ ತೇಂ ಏಕಾ..
ಜನಮ ಏಕ ದುಇ ಕಹಉಬಖಾನೀ. ಸಾವಧಾನ ಸುನು ಸುಮತಿ ಭವಾನೀ..
ದ್ವಾರಪಾಲ ಹರಿ ಕೇ ಪ್ರಿಯ ದೋಊ. ಜಯ ಅರು ಬಿಜಯ ಜಾನ ಸಬ ಕೋಊ..
ಬಿಪ್ರ ಶ್ರಾಪ ತೇಂ ದೂನಉ ಭಾಈ. ತಾಮಸ ಅಸುರ ದೇಹ ತಿನ್ಹ ಪಾಈ..
ಕನಕಕಸಿಪು ಅರು ಹಾಟಕ ಲೋಚನ. ಜಗತ ಬಿದಿತ ಸುರಪತಿ ಮದ ಮೋಚನ..
ಬಿಜಈ ಸಮರ ಬೀರ ಬಿಖ್ಯಾತಾ. ಧರಿ ಬರಾಹ ಬಪು ಏಕ ನಿಪಾತಾ..
ಹೋಇ ನರಹರಿ ದೂಸರ ಪುನಿ ಮಾರಾ. ಜನ ಪ್ರಹಲಾದ ಸುಜಸ ಬಿಸ್ತಾರಾ..

3.7.122

चौपाई
એહિ બિધિ સકલ જીવ જગ રોગી। સોક હરષ ભય પ્રીતિ બિયોગી।।
માનક રોગ કછુક મૈં ગાએ। હહિં સબ કેં લખિ બિરલેન્હ પાએ।।
જાને તે છીજહિં કછુ પાપી। નાસ ન પાવહિં જન પરિતાપી।।
બિષય કુપથ્ય પાઇ અંકુરે। મુનિહુ હૃદયકા નર બાપુરે।।
રામ કૃપાનાસહિ સબ રોગા। જૌં એહિ ભાિ બનૈ સંયોગા।।
સદગુર બૈદ બચન બિસ્વાસા। સંજમ યહ ન બિષય કૈ આસા।।
રઘુપતિ ભગતિ સજીવન મૂરી। અનૂપાન શ્રદ્ધા મતિ પૂરી।।
એહિ બિધિ ભલેહિં સો રોગ નસાહીં। નાહિં ત જતન કોટિ નહિં જાહીં।।
જાનિઅ તબ મન બિરુજ ગોસા। જબ ઉર બલ બિરાગ અધિકાઈ।।

3.2.122

चौपाई
ગા ગા અસ હોઇ અનંદૂ। દેખિ ભાનુકુલ કૈરવ ચંદૂ।।
જે કછુ સમાચાર સુનિ પાવહિં। તે નૃપ રાનિહિ દોસુ લગાવહિં।।
કહહિં એક અતિ ભલ નરનાહૂ। દીન્હ હમહિ જોઇ લોચન લાહૂ।।
કહહિં પરસ્પર લોગ લોગાઈં। બાતેં સરલ સનેહ સુહાઈં।।
તે પિતુ માતુ ધન્ય જિન્હ જાએ। ધન્ય સો નગરુ જહાતેં આએ।।
ધન્ય સો દેસુ સૈલુ બન ગાઊ જહજહજાહિં ધન્ય સોઇ ઠાઊ।
સુખ પાયઉ બિરંચિ રચિ તેહી। એ જેહિ કે સબ ભાિ સનેહી।।
રામ લખન પથિ કથા સુહાઈ। રહી સકલ મગ કાનન છાઈ।।

3.1.122

चौपाई
સોઇ જસ ગાઇ ભગત ભવ તરહીં। કૃપાસિંધુ જન હિત તનુ ધરહીં।।
રામ જનમ કે હેતુ અનેકા। પરમ બિચિત્ર એક તેં એકા।।
જનમ એક દુઇ કહઉબખાની। સાવધાન સુનુ સુમતિ ભવાની।।
દ્વારપાલ હરિ કે પ્રિય દોઊ। જય અરુ બિજય જાન સબ કોઊ।।
બિપ્ર શ્રાપ તેં દૂનઉ ભાઈ। તામસ અસુર દેહ તિન્હ પાઈ।।
કનકકસિપુ અરુ હાટક લોચન। જગત બિદિત સુરપતિ મદ મોચન।।
બિજઈ સમર બીર બિખ્યાતા। ધરિ બરાહ બપુ એક નિપાતા।।
હોઇ નરહરિ દૂસર પુનિ મારા। જન પ્રહલાદ સુજસ બિસ્તારા।।

2.7.122

चौपाई
এহি বিধি সকল জীব জগ রোগী৷ সোক হরষ ভয প্রীতি বিযোগী৷৷
মানক রোগ কছুক মৈং গাএ৷ হহিং সব কেং লখি বিরলেন্হ পাএ৷৷
জানে তে ছীজহিং কছু পাপী৷ নাস ন পাবহিং জন পরিতাপী৷৷
বিষয কুপথ্য পাই অংকুরে৷ মুনিহু হৃদযকা নর বাপুরে৷৷
রাম কৃপানাসহি সব রোগা৷ জৌং এহি ভাি বনৈ সংযোগা৷৷
সদগুর বৈদ বচন বিস্বাসা৷ সংজম যহ ন বিষয কৈ আসা৷৷
রঘুপতি ভগতি সজীবন মূরী৷ অনূপান শ্রদ্ধা মতি পূরী৷৷
এহি বিধি ভলেহিং সো রোগ নসাহীং৷ নাহিং ত জতন কোটি নহিং জাহীং৷৷
জানিঅ তব মন বিরুজ গোসা৷ জব উর বল বিরাগ অধিকাঈ৷৷

2.2.122

चौपाई
গা গা অস হোই অনংদূ৷ দেখি ভানুকুল কৈরব চংদূ৷৷
জে কছু সমাচার সুনি পাবহিং৷ তে নৃপ রানিহি দোসু লগাবহিং৷৷
কহহিং এক অতি ভল নরনাহূ৷ দীন্হ হমহি জোই লোচন লাহূ৷৷
কহহিং পরস্পর লোগ লোগাঈং৷ বাতেং সরল সনেহ সুহাঈং৷৷
তে পিতু মাতু ধন্য জিন্হ জাএ৷ ধন্য সো নগরু জহাতেং আএ৷৷
ধন্য সো দেসু সৈলু বন গাঊ জহজহজাহিং ধন্য সোই ঠাঊ৷
সুখ পাযউ বিরংচি রচি তেহী৷ এ জেহি কে সব ভাি সনেহী৷৷
রাম লখন পথি কথা সুহাঈ৷ রহী সকল মগ কানন ছাঈ৷৷

2.1.122

चौपाई
সোই জস গাই ভগত ভব তরহীং৷ কৃপাসিংধু জন হিত তনু ধরহীং৷৷
রাম জনম কে হেতু অনেকা৷ পরম বিচিত্র এক তেং একা৷৷
জনম এক দুই কহউবখানী৷ সাবধান সুনু সুমতি ভবানী৷৷
দ্বারপাল হরি কে প্রিয দোঊ৷ জয অরু বিজয জান সব কোঊ৷৷
বিপ্র শ্রাপ তেং দূনউ ভাঈ৷ তামস অসুর দেহ তিন্হ পাঈ৷৷
কনককসিপু অরু হাটক লোচন৷ জগত বিদিত সুরপতি মদ মোচন৷৷
বিজঈ সমর বীর বিখ্যাতা৷ ধরি বরাহ বপু এক নিপাতা৷৷
হোই নরহরি দূসর পুনি মারা৷ জন প্রহলাদ সুজস বিস্তারা৷৷

1.7.122

चौपाई
एहि बिधि सकल जीव जग रोगी। सोक हरष भय प्रीति बियोगी।।
मानक रोग कछुक मैं गाए। हहिं सब कें लखि बिरलेन्ह पाए।।
जाने ते छीजहिं कछु पापी। नास न पावहिं जन परितापी।।
बिषय कुपथ्य पाइ अंकुरे। मुनिहु हृदयँ का नर बापुरे।।
राम कृपाँ नासहि सब रोगा। जौं एहि भाँति बनै संयोगा।।
सदगुर बैद बचन बिस्वासा। संजम यह न बिषय कै आसा।।
रघुपति भगति सजीवन मूरी। अनूपान श्रद्धा मति पूरी।।
एहि बिधि भलेहिं सो रोग नसाहीं। नाहिं त जतन कोटि नहिं जाहीं।।
जानिअ तब मन बिरुज गोसाँई। जब उर बल बिराग अधिकाई।।

1.2.122

चौपाई
गाँव गाँव अस होइ अनंदू। देखि भानुकुल कैरव चंदू।।
जे कछु समाचार सुनि पावहिं। ते नृप रानिहि दोसु लगावहिं।।
कहहिं एक अति भल नरनाहू। दीन्ह हमहि जोइ लोचन लाहू।।
कहहिं परस्पर लोग लोगाईं। बातें सरल सनेह सुहाईं।।
ते पितु मातु धन्य जिन्ह जाए। धन्य सो नगरु जहाँ तें आए।।
धन्य सो देसु सैलु बन गाऊँ। जहँ जहँ जाहिं धन्य सोइ ठाऊँ।।
सुख पायउ बिरंचि रचि तेही। ए जेहि के सब भाँति सनेही।।
राम लखन पथि कथा सुहाई। रही सकल मग कानन छाई।।

दोहा/सोरठा

1.1.122

चौपाई
सोइ जस गाइ भगत भव तरहीं। कृपासिंधु जन हित तनु धरहीं।।
राम जनम के हेतु अनेका। परम बिचित्र एक तें एका।।
जनम एक दुइ कहउँ बखानी। सावधान सुनु सुमति भवानी।।
द्वारपाल हरि के प्रिय दोऊ। जय अरु बिजय जान सब कोऊ।।
बिप्र श्राप तें दूनउ भाई। तामस असुर देह तिन्ह पाई।।
कनककसिपु अरु हाटक लोचन। जगत बिदित सुरपति मद मोचन।।
बिजई समर बीर बिख्याता। धरि बराह बपु एक निपाता।।
होइ नरहरि दूसर पुनि मारा। जन प्रहलाद सुजस बिस्तारा।।

दोहा/सोरठा

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