127

4.1.127

चौपाई
ಭಯಉ ನ ನಾರದ ಮನ ಕಛು ರೋಷಾ. ಕಹಿ ಪ್ರಿಯ ಬಚನ ಕಾಮ ಪರಿತೋಷಾ..
ನಾಇ ಚರನ ಸಿರು ಆಯಸು ಪಾಈ. ಗಯಉ ಮದನ ತಬ ಸಹಿತ ಸಹಾಈ..
ಮುನಿ ಸುಸೀಲತಾ ಆಪನಿ ಕರನೀ. ಸುರಪತಿ ಸಭಾಜಾಇ ಸಬ ಬರನೀ..
ತಬ ನಾರದ ಗವನೇ ಸಿವ ಪಾಹೀಂ. ಜಿತಾ ಕಾಮ ಅಹಮಿತಿ ಮನ ಮಾಹೀಂ..
ಮಾರ ಚರಿತ ಸಂಕರಹಿಂ ಸುನಾಏ. ಅತಿಪ್ರಿಯ ಜಾನಿ ಮಹೇಸ ಸಿಖಾಏ..
ಬಾರ ಬಾರ ಬಿನವಉಮುನಿ ತೋಹೀಂ. ಜಿಮಿ ಯಹ ಕಥಾ ಸುನಾಯಹು ಮೋಹೀಂ..
ತಿಮಿ ಜನಿ ಹರಿಹಿ ಸುನಾವಹು ಕಬಹೂ ಚಲೇಹುಪ್ರಸಂಗ ದುರಾಏಡು ತಬಹೂ.

दोहा/सोरठा
ಸಂಭು ದೀನ್ಹ ಉಪದೇಸ ಹಿತ ನಹಿಂ ನಾರದಹಿ ಸೋಹಾನ.
ಭಾರದ್ವಾಜ ಕೌತುಕ ಸುನಹು ಹರಿ ಇಚ್ಛಾ ಬಲವಾನ..127..

3.7.127

चौपाई
સોઇ સર્બગ્ય ગુની સોઇ ગ્યાતા। સોઇ મહિ મંડિત પંડિત દાતા।।
ધર્મ પરાયન સોઇ કુલ ત્રાતા। રામ ચરન જા કર મન રાતા।।
નીતિ નિપુન સોઇ પરમ સયાના। શ્રુતિ સિદ્ધાંત નીક તેહિં જાના।।
સોઇ કબિ કોબિદ સોઇ રનધીરા। જો છલ છાડ઼િ ભજઇ રઘુબીરા।।
ધન્ય દેસ સો જહસુરસરી। ધન્ય નારિ પતિબ્રત અનુસરી।।
ધન્ય સો ભૂપુ નીતિ જો કરઈ। ધન્ય સો દ્વિજ નિજ ધર્મ ન ટરઈ।।
સો ધન ધન્ય પ્રથમ ગતિ જાકી। ધન્ય પુન્ય રત મતિ સોઇ પાકી।।
ધન્ય ઘરી સોઇ જબ સતસંગા। ધન્ય જન્મ દ્વિજ ભગતિ અભંગા।।

3.2.127

चौपाई
જગુ પેખન તુમ્હ દેખનિહારે। બિધિ હરિ સંભુ નચાવનિહારે।।
તેઉ ન જાનહિં મરમુ તુમ્હારા। ઔરુ તુમ્હહિ કો જાનનિહારા।।
સોઇ જાનઇ જેહિ દેહુ જનાઈ। જાનત તુમ્હહિ તુમ્હઇ હોઇ જાઈ।।
તુમ્હરિહિ કૃપાતુમ્હહિ રઘુનંદન। જાનહિં ભગત ભગત ઉર ચંદન।।
ચિદાનંદમય દેહ તુમ્હારી। બિગત બિકાર જાન અધિકારી।।
નર તનુ ધરેહુ સંત સુર કાજા। કહહુ કરહુ જસ પ્રાકૃત રાજા।।
રામ દેખિ સુનિ ચરિત તુમ્હારે। જડ઼ મોહહિં બુધ હોહિં સુખારે।।
તુમ્હ જો કહહુ કરહુ સબુ સાા। જસ કાછિઅ તસ ચાહિઅ નાચા।।

3.1.127

चौपाई
ભયઉ ન નારદ મન કછુ રોષા। કહિ પ્રિય બચન કામ પરિતોષા।।
નાઇ ચરન સિરુ આયસુ પાઈ। ગયઉ મદન તબ સહિત સહાઈ।।
મુનિ સુસીલતા આપનિ કરની। સુરપતિ સભાજાઇ સબ બરની।।
તબ નારદ ગવને સિવ પાહીં। જિતા કામ અહમિતિ મન માહીં।।
માર ચરિત સંકરહિં સુનાએ। અતિપ્રિય જાનિ મહેસ સિખાએ।।
બાર બાર બિનવઉમુનિ તોહીં। જિમિ યહ કથા સુનાયહુ મોહીં।।
તિમિ જનિ હરિહિ સુનાવહુ કબહૂ ચલેહુપ્રસંગ દુરાએડુ તબહૂ।

दोहा/सोरठा
સંભુ દીન્હ ઉપદેસ હિત નહિં નારદહિ સોહાન।
ભારદ્વાજ કૌતુક સુનહુ હરિ ઇચ્છા બલવાન।।127।।

2.7.127

चौपाई
সোই সর্বগ্য গুনী সোই গ্যাতা৷ সোই মহি মংডিত পংডিত দাতা৷৷
ধর্ম পরাযন সোই কুল ত্রাতা৷ রাম চরন জা কর মন রাতা৷৷
নীতি নিপুন সোই পরম সযানা৷ শ্রুতি সিদ্ধাংত নীক তেহিং জানা৷৷
সোই কবি কোবিদ সোই রনধীরা৷ জো ছল ছাড়ি ভজই রঘুবীরা৷৷
ধন্য দেস সো জহসুরসরী৷ ধন্য নারি পতিব্রত অনুসরী৷৷
ধন্য সো ভূপু নীতি জো করঈ৷ ধন্য সো দ্বিজ নিজ ধর্ম ন টরঈ৷৷
সো ধন ধন্য প্রথম গতি জাকী৷ ধন্য পুন্য রত মতি সোই পাকী৷৷
ধন্য ঘরী সোই জব সতসংগা৷ ধন্য জন্ম দ্বিজ ভগতি অভংগা৷৷

2.2.127

चौपाई
জগু পেখন তুম্হ দেখনিহারে৷ বিধি হরি সংভু নচাবনিহারে৷৷
তেউ ন জানহিং মরমু তুম্হারা৷ ঔরু তুম্হহি কো জাননিহারা৷৷
সোই জানই জেহি দেহু জনাঈ৷ জানত তুম্হহি তুম্হই হোই জাঈ৷৷
তুম্হরিহি কৃপাতুম্হহি রঘুনংদন৷ জানহিং ভগত ভগত উর চংদন৷৷
চিদানংদময দেহ তুম্হারী৷ বিগত বিকার জান অধিকারী৷৷
নর তনু ধরেহু সংত সুর কাজা৷ কহহু করহু জস প্রাকৃত রাজা৷৷
রাম দেখি সুনি চরিত তুম্হারে৷ জড় মোহহিং বুধ হোহিং সুখারে৷৷
তুম্হ জো কহহু করহু সবু সাা৷ জস কাছিঅ তস চাহিঅ নাচা৷৷

2.1.127

चौपाई
ভযউ ন নারদ মন কছু রোষা৷ কহি প্রিয বচন কাম পরিতোষা৷৷
নাই চরন সিরু আযসু পাঈ৷ গযউ মদন তব সহিত সহাঈ৷৷
মুনি সুসীলতা আপনি করনী৷ সুরপতি সভাজাই সব বরনী৷৷
তব নারদ গবনে সিব পাহীং৷ জিতা কাম অহমিতি মন মাহীং৷৷
মার চরিত সংকরহিং সুনাএ৷ অতিপ্রিয জানি মহেস সিখাএ৷৷
বার বার বিনবউমুনি তোহীং৷ জিমি যহ কথা সুনাযহু মোহীং৷৷
তিমি জনি হরিহি সুনাবহু কবহূ চলেহুপ্রসংগ দুরাএডু তবহূ৷

दोहा/सोरठा
সংভু দীন্হ উপদেস হিত নহিং নারদহি সোহান৷
ভারদ্বাজ কৌতুক সুনহু হরি ইচ্ছা বলবান৷৷127৷৷

1.7.127

चौपाई
सोइ सर्बग्य गुनी सोइ ग्याता। सोइ महि मंडित पंडित दाता।।
धर्म परायन सोइ कुल त्राता। राम चरन जा कर मन राता।।
नीति निपुन सोइ परम सयाना। श्रुति सिद्धांत नीक तेहिं जाना।।
सोइ कबि कोबिद सोइ रनधीरा। जो छल छाड़ि भजइ रघुबीरा।।
धन्य देस सो जहँ सुरसरी। धन्य नारि पतिब्रत अनुसरी।।
धन्य सो भूपु नीति जो करई। धन्य सो द्विज निज धर्म न टरई।।
सो धन धन्य प्रथम गति जाकी। धन्य पुन्य रत मति सोइ पाकी।।
धन्य घरी सोइ जब सतसंगा। धन्य जन्म द्विज भगति अभंगा।।

1.2.127

चौपाई
जगु पेखन तुम्ह देखनिहारे। बिधि हरि संभु नचावनिहारे।।
तेउ न जानहिं मरमु तुम्हारा। औरु तुम्हहि को जाननिहारा।।
सोइ जानइ जेहि देहु जनाई। जानत तुम्हहि तुम्हइ होइ जाई।।
तुम्हरिहि कृपाँ तुम्हहि रघुनंदन। जानहिं भगत भगत उर चंदन।।
चिदानंदमय देह तुम्हारी। बिगत बिकार जान अधिकारी।।
नर तनु धरेहु संत सुर काजा। कहहु करहु जस प्राकृत राजा।।
राम देखि सुनि चरित तुम्हारे। जड़ मोहहिं बुध होहिं सुखारे।।
तुम्ह जो कहहु करहु सबु साँचा। जस काछिअ तस चाहिअ नाचा।।

1.1.127

चौपाई
भयउ न नारद मन कछु रोषा। कहि प्रिय बचन काम परितोषा।।
नाइ चरन सिरु आयसु पाई। गयउ मदन तब सहित सहाई।।
मुनि सुसीलता आपनि करनी। सुरपति सभाँ जाइ सब बरनी।।
सुनि सब कें मन अचरजु आवा। मुनिहि प्रसंसि हरिहि सिरु नावा।।
तब नारद गवने सिव पाहीं। जिता काम अहमिति मन माहीं।।
मार चरित संकरहिं सुनाए। अतिप्रिय जानि महेस सिखाए।।
बार बार बिनवउँ मुनि तोहीं। जिमि यह कथा सुनायहु मोहीं।।
तिमि जनि हरिहि सुनावहु कबहूँ। चलेहुँ प्रसंग दुराएडु तबहूँ।।

दोहा/सोरठा

Pages

Subscribe to RSS - 127