48

2.7.48

चौपाई
এক বার বসিষ্ট মুনি আএ৷ জহারাম সুখধাম সুহাএ৷৷
অতি আদর রঘুনাযক কীন্হা৷ পদ পখারি পাদোদক লীন্হা৷৷
রাম সুনহু মুনি কহ কর জোরী৷ কৃপাসিংধু বিনতী কছু মোরী৷৷
দেখি দেখি আচরন তুম্হারা৷ হোত মোহ মম হৃদযঅপারা৷৷
মহিমা অমিত বেদ নহিং জানা৷ মৈং কেহি ভাি কহউভগবানা৷৷
উপরোহিত্য কর্ম অতি মংদা৷ বেদ পুরান সুমৃতি কর নিংদা৷৷
জব ন লেউমৈং তব বিধি মোহী৷ কহা লাভ আগেং সুত তোহী৷৷
পরমাতমা ব্রহ্ম নর রূপা৷ হোইহি রঘুকুল ভূষন ভূপা৷৷

2.6.48

चौपाई
নিসা জানি কপি চারিউ অনী৷ আএ জহাকোসলা ধনী৷৷
রাম কৃপা করি চিতবা সবহী৷ ভএ বিগতশ্রম বানর তবহী৷৷
উহাদসানন সচিব হারে৷ সব সন কহেসি সুভট জে মারে৷৷
আধা কটকু কপিন্হ সংঘারা৷ কহহু বেগি কা করিঅ বিচারা৷৷
মাল্যবংত অতি জরঠ নিসাচর৷ রাবন মাতু পিতা মংত্রী বর৷৷
বোলা বচন নীতি অতি পাবন৷ সুনহু তাত কছু মোর সিখাবন৷৷
জব তে তুম্হ সীতা হরি আনী৷ অসগুন হোহিং ন জাহিং বখানী৷৷
বেদ পুরান জাসু জসু গাযো৷ রাম বিমুখ কাহুন সুখ পাযো৷৷

2.5.48

चौपाई
সুনহু সখা নিজ কহউসুভাঊ৷ জান ভুসুংডি সংভু গিরিজাঊ৷৷
জৌং নর হোই চরাচর দ্রোহী৷ আবে সভয সরন তকি মোহী৷৷
তজি মদ মোহ কপট ছল নানা৷ করউসদ্য তেহি সাধু সমানা৷৷
জননী জনক বংধু সুত দারা৷ তনু ধনু ভবন সুহ্রদ পরিবারা৷৷
সব কৈ মমতা তাগ বটোরী৷ মম পদ মনহি বা বরি ডোরী৷৷
সমদরসী ইচ্ছা কছু নাহীং৷ হরষ সোক ভয নহিং মন মাহীং৷৷
অস সজ্জন মম উর বস কৈসেং৷ লোভী হৃদযবসই ধনু জৈসেং৷৷
তুম্হ সারিখে সংত প্রিয মোরেং৷ ধরউদেহ নহিং আন নিহোরেং৷৷

2.2.48

चौपाई
কা সুনাই বিধি কাহ সুনাবা৷ কা দেখাই চহ কাহ দেখাবা৷৷
এক কহহিং ভল ভূপ ন কীন্হা৷ বরু বিচারি নহিং কুমতিহি দীন্হা৷৷
জো হঠি ভযউ সকল দুখ ভাজনু৷ অবলা বিবস গ্যানু গুনু গা জনু৷৷
এক ধরম পরমিতি পহিচানে৷ নৃপহি দোসু নহিং দেহিং সযানে৷৷
সিবি দধীচি হরিচংদ কহানী৷ এক এক সন কহহিং বখানী৷৷
এক ভরত কর সংমত কহহীং৷ এক উদাস ভাযসুনি রহহীং৷৷
কান মূদি কর রদ গহি জীহা৷ এক কহহিং যহ বাত অলীহা৷৷
সুকৃত জাহিং অস কহত তুম্হারে৷ রামু ভরত কহুপ্রানপিআরে৷৷

2.1.48

चौपाई
এক বার ত্রেতা জুগ মাহীং৷ সংভু গএ কুংভজ রিষি পাহীং৷৷
সংগ সতী জগজননি ভবানী৷ পূজে রিষি অখিলেস্বর জানী৷৷
রামকথা মুনীবর্জ বখানী৷ সুনী মহেস পরম সুখু মানী৷৷
রিষি পূছী হরিভগতি সুহাঈ৷ কহী সংভু অধিকারী পাঈ৷৷
কহত সুনত রঘুপতি গুন গাথা৷ কছু দিন তহারহে গিরিনাথা৷৷
মুনি সন বিদা মাগি ত্রিপুরারী৷ চলে ভবন স দচ্ছকুমারী৷৷
তেহি অবসর ভংজন মহিভারা৷ হরি রঘুবংস লীন্হ অবতারা৷৷
পিতা বচন তজি রাজু উদাসী৷ দংডক বন বিচরত অবিনাসী৷৷

1.7.48

चौपाई
एक बार बसिष्ट मुनि आए। जहाँ राम सुखधाम सुहाए।।
अति आदर रघुनायक कीन्हा। पद पखारि पादोदक लीन्हा।।
राम सुनहु मुनि कह कर जोरी। कृपासिंधु बिनती कछु मोरी।।
देखि देखि आचरन तुम्हारा। होत मोह मम हृदयँ अपारा।।
महिमा अमित बेद नहिं जाना। मैं केहि भाँति कहउँ भगवाना।।
उपरोहित्य कर्म अति मंदा। बेद पुरान सुमृति कर निंदा।।
जब न लेउँ मैं तब बिधि मोही। कहा लाभ आगें सुत तोही।।
परमातमा ब्रह्म नर रूपा। होइहि रघुकुल भूषन भूपा।।

1.6.48

चौपाई
निसा जानि कपि चारिउ अनी। आए जहाँ कोसला धनी।।
राम कृपा करि चितवा सबही। भए बिगतश्रम बानर तबही।।
उहाँ दसानन सचिव हँकारे। सब सन कहेसि सुभट जे मारे।।
आधा कटकु कपिन्ह संघारा। कहहु बेगि का करिअ बिचारा।।
माल्यवंत अति जरठ निसाचर। रावन मातु पिता मंत्री बर।।
बोला बचन नीति अति पावन। सुनहु तात कछु मोर सिखावन।।
जब ते तुम्ह सीता हरि आनी। असगुन होहिं न जाहिं बखानी।।
बेद पुरान जासु जसु गायो। राम बिमुख काहुँ न सुख पायो।।

दोहा/सोरठा

1.5.48

चौपाई
सुनहु सखा निज कहउँ सुभाऊ। जान भुसुंडि संभु गिरिजाऊ।।
जौं नर होइ चराचर द्रोही। आवे सभय सरन तकि मोही।।
तजि मद मोह कपट छल नाना। करउँ सद्य तेहि साधु समाना।।
जननी जनक बंधु सुत दारा। तनु धनु भवन सुह्रद परिवारा।।
सब कै ममता ताग बटोरी। मम पद मनहि बाँध बरि डोरी।।
समदरसी इच्छा कछु नाहीं। हरष सोक भय नहिं मन माहीं।।
अस सज्जन मम उर बस कैसें। लोभी हृदयँ बसइ धनु जैसें।।
तुम्ह सारिखे संत प्रिय मोरें। धरउँ देह नहिं आन निहोरें।।

दोहा/सोरठा

1.2.48

चौपाई
का सुनाइ बिधि काह सुनावा। का देखाइ चह काह देखावा।।
एक कहहिं भल भूप न कीन्हा। बरु बिचारि नहिं कुमतिहि दीन्हा।।
जो हठि भयउ सकल दुख भाजनु। अबला बिबस ग्यानु गुनु गा जनु।।
एक धरम परमिति पहिचाने। नृपहि दोसु नहिं देहिं सयाने।।
सिबि दधीचि हरिचंद कहानी। एक एक सन कहहिं बखानी।।
एक भरत कर संमत कहहीं। एक उदास भायँ सुनि रहहीं।।
कान मूदि कर रद गहि जीहा। एक कहहिं यह बात अलीहा।।
सुकृत जाहिं अस कहत तुम्हारे। रामु भरत कहुँ प्रानपिआरे।।

दोहा/सोरठा

1.1.48

चौपाई
एक बार त्रेता जुग माहीं। संभु गए कुंभज रिषि पाहीं।।
संग सती जगजननि भवानी। पूजे रिषि अखिलेस्वर जानी।।
रामकथा मुनीबर्ज बखानी। सुनी महेस परम सुखु मानी।।
रिषि पूछी हरिभगति सुहाई। कही संभु अधिकारी पाई।।
कहत सुनत रघुपति गुन गाथा। कछु दिन तहाँ रहे गिरिनाथा।।
मुनि सन बिदा मागि त्रिपुरारी। चले भवन सँग दच्छकुमारी।।
तेहि अवसर भंजन महिभारा। हरि रघुबंस लीन्ह अवतारा।।
पिता बचन तजि राजु उदासी। दंडक बन बिचरत अबिनासी।।

दोहा/सोरठा

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