73

3.2.73

चौपाई
માગહુ બિદા માતુ સન જાઈ। આવહુ બેગિ ચલહુ બન ભાઈ।।
મુદિત ભએ સુનિ રઘુબર બાની। ભયઉ લાભ બડ઼ ગઇ બડ઼િ હાની।।
હરષિત હ્દયમાતુ પહિં આએ। મનહુઅંધ ફિરિ લોચન પાએ।
જાઇ જનનિ પગ નાયઉ માથા। મનુ રઘુનંદન જાનકિ સાથા।।
પૂે માતુ મલિન મન દેખી। લખન કહી સબ કથા બિસેષી।।
ગઈ સહમિ સુનિ બચન કઠોરા। મૃગી દેખિ દવ જનુ ચહુ ઓરા।।
લખન લખેઉ ભા અનરથ આજૂ। એહિં સનેહ બસ કરબ અકાજૂ।।
માગત બિદા સભય સકુચાહીં। જાઇ સંગ બિધિ કહિહિ કિ નાહી।।

3.1.73

चौपाई
કરહિ જાઇ તપુ સૈલકુમારી। નારદ કહા સો સત્ય બિચારી।।
માતુ પિતહિ પુનિ યહ મત ભાવા। તપુ સુખપ્રદ દુખ દોષ નસાવા।।
તપબલ રચઇ પ્રપંચ બિધાતા। તપબલ બિષ્નુ સકલ જગ ત્રાતા।।
તપબલ સંભુ કરહિં સંઘારા। તપબલ સેષુ ધરઇ મહિભારા।।
તપ અધાર સબ સૃષ્ટિ ભવાની। કરહિ જાઇ તપુ અસ જિયજાની।।
સુનત બચન બિસમિત મહતારી। સપન સુનાયઉ ગિરિહિ હારી।।
માતુ પિતુહિ બહુબિધિ સમુઝાઈ। ચલીં ઉમા તપ હિત હરષાઈ।।
પ્રિય પરિવાર પિતા અરુ માતા। ભએ બિકલ મુખ આવ ન બાતા।।

2.7.73

चौपाई
অসি রঘুপতি লীলা উরগারী৷ দনুজ বিমোহনি জন সুখকারী৷৷
জে মতি মলিন বিষযবস কামী৷ প্রভু মোহ ধরহিং ইমি স্বামী৷৷
নযন দোষ জা কহজব হোঈ৷ পীত বরন সসি কহুকহ সোঈ৷৷
জব জেহি দিসি ভ্রম হোই খগেসা৷ সো কহ পচ্ছিম উযউ দিনেসা৷৷
নৌকারূঢ় চলত জগ দেখা৷ অচল মোহ বস আপুহি লেখা৷৷
বালক ভ্রমহিং ন ভ্রমহিং গৃহাদীং৷ কহহিং পরস্পর মিথ্যাবাদী৷৷
হরি বিষইক অস মোহ বিহংগা৷ সপনেহুনহিং অগ্যান প্রসংগা৷৷
মাযাবস মতিমংদ অভাগী৷ হৃদযজমনিকা বহুবিধি লাগী৷৷
তে সঠ হঠ বস সংসয করহীং৷ নিজ অগ্যান রাম পর ধরহীং৷৷

2.6.73

चौपाई
সক্তি সূল তরবারি কৃপানা৷ অস্ত্র সস্ত্র কুলিসাযুধ নানা৷৷
ডারহ পরসু পরিঘ পাষানা৷ লাগেউ বৃষ্টি করৈ বহু বানা৷৷
দস দিসি রহে বান নভ ছাঈ৷ মানহুমঘা মেঘ ঝরি লাঈ৷৷
ধরু ধরু মারু সুনিঅ ধুনি কানা৷ জো মারই তেহি কোউ ন জানা৷৷
গহি গিরি তরু অকাস কপি ধাবহিং৷ দেখহি তেহি ন দুখিত ফিরি আবহিং৷৷
অবঘট ঘাট বাট গিরি কংদর৷ মাযা বল কীন্হেসি সর পংজর৷৷
জাহিং কহাব্যাকুল ভএ বংদর৷ সুরপতি বংদি পরে জনু মংদর৷৷
মারুতসুত অংগদ নল নীলা৷ কীন্হেসি বিকল সকল বলসীলা৷৷
পুনি লছিমন সুগ্রীব বিভীষন৷ সরন্হি মারি কীন্হেসি জর্জর তন৷৷

2.2.73

चौपाई
মাগহু বিদা মাতু সন জাঈ৷ আবহু বেগি চলহু বন ভাঈ৷৷
মুদিত ভএ সুনি রঘুবর বানী৷ ভযউ লাভ বড় গই বড়ি হানী৷৷
হরষিত হ্দযমাতু পহিং আএ৷ মনহুঅংধ ফিরি লোচন পাএ৷
জাই জননি পগ নাযউ মাথা৷ মনু রঘুনংদন জানকি সাথা৷৷
পূে মাতু মলিন মন দেখী৷ লখন কহী সব কথা বিসেষী৷৷
গঈ সহমি সুনি বচন কঠোরা৷ মৃগী দেখি দব জনু চহু ওরা৷৷
লখন লখেউ ভা অনরথ আজূ৷ এহিং সনেহ বস করব অকাজূ৷৷
মাগত বিদা সভয সকুচাহীং৷ জাই সংগ বিধি কহিহি কি নাহী৷৷

2.1.73

चौपाई
করহি জাই তপু সৈলকুমারী৷ নারদ কহা সো সত্য বিচারী৷৷
মাতু পিতহি পুনি যহ মত ভাবা৷ তপু সুখপ্রদ দুখ দোষ নসাবা৷৷
তপবল রচই প্রপংচ বিধাতা৷ তপবল বিষ্নু সকল জগ ত্রাতা৷৷
তপবল সংভু করহিং সংঘারা৷ তপবল সেষু ধরই মহিভারা৷৷
তপ অধার সব সৃষ্টি ভবানী৷ করহি জাই তপু অস জিযজানী৷৷
সুনত বচন বিসমিত মহতারী৷ সপন সুনাযউ গিরিহি হারী৷৷
মাতু পিতুহি বহুবিধি সমুঝাঈ৷ চলীং উমা তপ হিত হরষাঈ৷৷
প্রিয পরিবার পিতা অরু মাতা৷ ভএ বিকল মুখ আব ন বাতা৷৷

1.7.73

चौपाई
असि रघुपति लीला उरगारी। दनुज बिमोहनि जन सुखकारी।।
जे मति मलिन बिषयबस कामी। प्रभु मोह धरहिं इमि स्वामी।।
नयन दोष जा कहँ जब होई। पीत बरन ससि कहुँ कह सोई।।
जब जेहि दिसि भ्रम होइ खगेसा। सो कह पच्छिम उयउ दिनेसा।।
नौकारूढ़ चलत जग देखा। अचल मोह बस आपुहि लेखा।।
बालक भ्रमहिं न भ्रमहिं गृहादीं। कहहिं परस्पर मिथ्याबादी।।
हरि बिषइक अस मोह बिहंगा। सपनेहुँ नहिं अग्यान प्रसंगा।।
मायाबस मतिमंद अभागी। हृदयँ जमनिका बहुबिधि लागी।।
ते सठ हठ बस संसय करहीं। निज अग्यान राम पर धरहीं।।

1.6.73

चौपाई
सक्ति सूल तरवारि कृपाना। अस्त्र सस्त्र कुलिसायुध नाना।।
डारह परसु परिघ पाषाना। लागेउ बृष्टि करै बहु बाना।।
दस दिसि रहे बान नभ छाई। मानहुँ मघा मेघ झरि लाई।।
धरु धरु मारु सुनिअ धुनि काना। जो मारइ तेहि कोउ न जाना।।
गहि गिरि तरु अकास कपि धावहिं। देखहि तेहि न दुखित फिरि आवहिं।।
अवघट घाट बाट गिरि कंदर। माया बल कीन्हेसि सर पंजर।।
जाहिं कहाँ ब्याकुल भए बंदर। सुरपति बंदि परे जनु मंदर।।
मारुतसुत अंगद नल नीला। कीन्हेसि बिकल सकल बलसीला।।

1.2.73

चौपाई
मागहु बिदा मातु सन जाई। आवहु बेगि चलहु बन भाई।।
मुदित भए सुनि रघुबर बानी। भयउ लाभ बड़ गइ बड़ि हानी।।
हरषित ह्दयँ मातु पहिं आए। मनहुँ अंध फिरि लोचन पाए।
जाइ जननि पग नायउ माथा। मनु रघुनंदन जानकि साथा।।
पूँछे मातु मलिन मन देखी। लखन कही सब कथा बिसेषी।।
गई सहमि सुनि बचन कठोरा। मृगी देखि दव जनु चहु ओरा।।
लखन लखेउ भा अनरथ आजू। एहिं सनेह बस करब अकाजू।।
मागत बिदा सभय सकुचाहीं। जाइ संग बिधि कहिहि कि नाही।।

दोहा/सोरठा

1.1.73

चौपाई
करहि जाइ तपु सैलकुमारी। नारद कहा सो सत्य बिचारी।।
मातु पितहि पुनि यह मत भावा। तपु सुखप्रद दुख दोष नसावा।।
तपबल रचइ प्रपंच बिधाता। तपबल बिष्नु सकल जग त्राता।।
तपबल संभु करहिं संघारा। तपबल सेषु धरइ महिभारा।।
तप अधार सब सृष्टि भवानी। करहि जाइ तपु अस जियँ जानी।।
सुनत बचन बिसमित महतारी। सपन सुनायउ गिरिहि हँकारी।।
मातु पितुहि बहुबिधि समुझाई। चलीं उमा तप हित हरषाई।।
प्रिय परिवार पिता अरु माता। भए बिकल मुख आव न बाता।।

दोहा/सोरठा

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