1.6.73

चौपाई
सक्ति सूल तरवारि कृपाना। अस्त्र सस्त्र कुलिसायुध नाना।।
डारह परसु परिघ पाषाना। लागेउ बृष्टि करै बहु बाना।।
दस दिसि रहे बान नभ छाई। मानहुँ मघा मेघ झरि लाई।।
धरु धरु मारु सुनिअ धुनि काना। जो मारइ तेहि कोउ न जाना।।
गहि गिरि तरु अकास कपि धावहिं। देखहि तेहि न दुखित फिरि आवहिं।।
अवघट घाट बाट गिरि कंदर। माया बल कीन्हेसि सर पंजर।।
जाहिं कहाँ ब्याकुल भए बंदर। सुरपति बंदि परे जनु मंदर।।
मारुतसुत अंगद नल नीला। कीन्हेसि बिकल सकल बलसीला।।
पुनि लछिमन सुग्रीव बिभीषन। सरन्हि मारि कीन्हेसि जर्जर तन।।
पुनि रघुपति सैं जूझे लागा। सर छाँड़इ होइ लागहिं नागा।।
ब्याल पास बस भए खरारी। स्वबस अनंत एक अबिकारी।।
नट इव कपट चरित कर नाना। सदा स्वतंत्र एक भगवाना।।
रन सोभा लगि प्रभुहिं बँधायो। नागपास देवन्ह भय पायो।।

दोहा/सोरठा
गिरिजा जासु नाम जपि मुनि काटहिं भव पास।
सो कि बंध तर आवइ ब्यापक बिस्व निवास।।73।।

Kaanda: 

Type: 

Language: 

Verse Number: