चौपाई
 बरबस राज सुतहि तब दीन्हा। नारि समेत गवन बन कीन्हा।। 
 तीरथ बर नैमिष बिख्याता। अति पुनीत साधक सिधि दाता।।
 बसहिं तहाँ मुनि सिद्ध समाजा। तहँ हियँ हरषि चलेउ मनु राजा।। 
 पंथ जात सोहहिं मतिधीरा। ग्यान भगति जनु धरें सरीरा।।
 पहुँचे जाइ धेनुमति तीरा। हरषि नहाने निरमल नीरा।। 
 आए मिलन सिद्ध मुनि ग्यानी। धरम धुरंधर नृपरिषि जानी।।
 जहँ जँह तीरथ रहे सुहाए। मुनिन्ह सकल सादर करवाए।। 
 कृस सरीर मुनिपट परिधाना। सत समाज नित सुनहिं पुराना ।
दोहा/सोरठा
द्वादस अच्छर मंत्र पुनि जपहिं सहित अनुराग। 
 बासुदेव पद पंकरुह दंपति मन अति लाग।।143।।
