चौपाई
 पद राजीव बरनि नहि जाहीं। मुनि मन मधुप बसहिं जेन्ह माहीं।। 
 बाम भाग सोभति अनुकूला। आदिसक्ति छबिनिधि जगमूला।।
 जासु अंस उपजहिं गुनखानी। अगनित लच्छि उमा ब्रह्मानी।। 
 भृकुटि बिलास जासु जग होई। राम बाम दिसि सीता सोई।।
 छबिसमुद्र हरि रूप बिलोकी। एकटक रहे नयन पट रोकी।। 
 चितवहिं सादर रूप अनूपा। तृप्ति न मानहिं मनु सतरूपा।।
 हरष बिबस तन दसा भुलानी। परे दंड इव गहि पद पानी।। 
 सिर परसे प्रभु निज कर कंजा। तुरत उठाए करुनापुंजा।।
दोहा/सोरठा
बोले कृपानिधान पुनि अति प्रसन्न मोहि जानि। 
 मागहु बर जोइ भाव मन महादानि अनुमानि।।148।।
