चौपाई
 लछिमन दीख उमाकृत बेषा चकित भए भ्रम हृदयँ बिसेषा।। 
 कहि न सकत कछु अति गंभीरा। प्रभु प्रभाउ जानत मतिधीरा।।
 सती कपटु जानेउ सुरस्वामी। सबदरसी सब अंतरजामी।। 
 सुमिरत जाहि मिटइ अग्याना। सोइ सरबग्य रामु भगवाना।।
 सती कीन्ह चह तहँहुँ दुराऊ। देखहु नारि सुभाव प्रभाऊ।। 
 निज माया बलु हृदयँ बखानी। बोले बिहसि रामु मृदु बानी।।
 जोरि पानि प्रभु कीन्ह प्रनामू। पिता समेत लीन्ह निज नामू।। 
 कहेउ बहोरि कहाँ बृषकेतू। बिपिन अकेलि फिरहु केहि हेतू।।
दोहा/सोरठा
राम बचन मृदु गूढ़ सुनि उपजा अति संकोचु। 
 सती सभीत महेस पहिं चलीं हृदयँ बड़ सोचु।।53।।
