1.2.16

चौपाई
एकहिं बार आस सब पूजी। अब कछु कहब जीभ करि दूजी।।
फोरै जोगु कपारु अभागा। भलेउ कहत दुख रउरेहि लागा।।
कहहिं झूठि फुरि बात बनाई। ते प्रिय तुम्हहि करुइ मैं माई।।
हमहुँ कहबि अब ठकुरसोहाती। नाहिं त मौन रहब दिनु राती।।
करि कुरूप बिधि परबस कीन्हा। बवा सो लुनिअ लहिअ जो दीन्हा।।
कोउ नृप होउ हमहि का हानी। चेरि छाड़ि अब होब कि रानी।।
जारै जोगु सुभाउ हमारा। अनभल देखि न जाइ तुम्हारा।।
तातें कछुक बात अनुसारी। छमिअ देबि बड़ि चूक हमारी।।

दोहा/सोरठा
गूढ़ कपट प्रिय बचन सुनि तीय अधरबुधि रानि।
सुरमाया बस बैरिनिहि सुह्द जानि पतिआनि।।16।।

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