चौपाई
 आगें दीखि जरत रिस भारी। मनहुँ रोष तरवारि उघारी।। 
 मूठि कुबुद्धि धार निठुराई। धरी कूबरीं सान बनाई।।
 लखी महीप कराल कठोरा। सत्य कि जीवनु लेइहि मोरा।। 
 बोले राउ कठिन करि छाती। बानी सबिनय तासु सोहाती।।
 प्रिया बचन कस कहसि कुभाँती। भीर प्रतीति प्रीति करि हाँती।। 
 मोरें भरतु रामु दुइ आँखी। सत्य कहउँ करि संकरू साखी।।
 अवसि दूतु मैं पठइब प्राता। ऐहहिं बेगि सुनत दोउ भ्राता।। 
 सुदिन सोधि सबु साजु सजाई। देउँ भरत कहुँ राजु बजाई।।
दोहा/सोरठा
 लोभु न रामहि राजु कर बहुत भरत पर प्रीति। 
 मैं बड़ छोट बिचारि जियँ करत रहेउँ नृपनीति।।31।।
