चौपाई
 जिऐ मीन बरू बारि बिहीना। मनि बिनु फनिकु जिऐ दुख दीना।। 
 कहउँ सुभाउ न छलु मन माहीं। जीवनु मोर राम बिनु नाहीं।।
 समुझि देखु जियँ प्रिया प्रबीना। जीवनु राम दरस आधीना।। 
 सुनि म्रदु बचन कुमति अति जरई। मनहुँ अनल आहुति घृत परई।।
 कहइ करहु किन कोटि उपाया। इहाँ न लागिहि राउरि माया।। 
 देहु कि लेहु अजसु करि नाहीं। मोहि न बहुत प्रपंच सोहाहीं।
 रामु साधु तुम्ह साधु सयाने। राममातु भलि सब पहिचाने।। 
 जस कौसिलाँ मोर भल ताका। तस फलु उन्हहि देउँ करि साका।।
दोहा/सोरठा
होत प्रात मुनिबेष धरि जौं न रामु बन जाहिं। 
 मोर मरनु राउर अजस नृप समुझिअ मन माहिं।।33।।
