चौपाई
 सब बिधि गुरु प्रसन्न जियँ जानी। बोलेउ राउ रहँसि मृदु बानी।। 
 नाथ रामु करिअहिं जुबराजू। कहिअ कृपा करि करिअ समाजू।।
 मोहि अछत यहु होइ उछाहू। लहहिं लोग सब लोचन लाहू।। 
 प्रभु प्रसाद सिव सबइ निबाहीं। यह लालसा एक मन माहीं।।
 पुनि न सोच तनु रहउ कि जाऊ। जेहिं न होइ पाछें पछिताऊ।। 
 सुनि मुनि दसरथ बचन सुहाए। मंगल मोद मूल मन भाए।।
 सुनु नृप जासु बिमुख पछिताहीं। जासु भजन बिनु जरनि न जाहीं।। 
 भयउ तुम्हार तनय सोइ स्वामी। रामु पुनीत प्रेम अनुगामी।।
दोहा/सोरठा
बेगि बिलंबु न करिअ नृप साजिअ सबुइ समाजु। 
 सुदिन सुमंगलु तबहिं जब रामु होहिं जुबराजु।।4।।
