चौपाई
 अजसु होउ जग सुजसु नसाऊ। नरक परौ बरु सुरपुरु जाऊ।। 
 सब दुख दुसह सहावहु मोही। लोचन ओट रामु जनि होंही।।
 अस मन गुनइ राउ नहिं बोला। पीपर पात सरिस मनु डोला।। 
 रघुपति पितहि प्रेमबस जानी। पुनि कछु कहिहि मातु अनुमानी।।
 देस काल अवसर अनुसारी। बोले बचन बिनीत बिचारी।। 
 तात कहउँ कछु करउँ ढिठाई। अनुचितु छमब जानि लरिकाई।।
 अति लघु बात लागि दुखु पावा। काहुँ न मोहि कहि प्रथम जनावा।। 
 देखि गोसाइँहि पूँछिउँ माता। सुनि प्रसंगु भए सीतल गाता।।
दोहा/सोरठा
मंगल समय सनेह बस सोच परिहरिअ तात। 
 आयसु देइअ हरषि हियँ कहि पुलके प्रभु गात।।45।।
