1.2.9

चौपाई
तब नरनाहँ बसिष्ठु बोलाए। रामधाम सिख देन पठाए।।
गुर आगमनु सुनत रघुनाथा। द्वार आइ पद नायउ माथा।।
सादर अरघ देइ घर आने। सोरह भाँति पूजि सनमाने।।
गहे चरन सिय सहित बहोरी। बोले रामु कमल कर जोरी।।
सेवक सदन स्वामि आगमनू। मंगल मूल अमंगल दमनू।।
तदपि उचित जनु बोलि सप्रीती। पठइअ काज नाथ असि नीती।।
प्रभुता तजि प्रभु कीन्ह सनेहू। भयउ पुनीत आजु यहु गेहू।।
आयसु होइ सो करौं गोसाई। सेवक लहइ स्वामि सेवकाई।।

दोहा/सोरठा
सुनि सनेह साने बचन मुनि रघुबरहि प्रसंस।
राम कस न तुम्ह कहहु अस हंस बंस अवतंस।।9।।

Kaanda: 

Type: 

Language: 

Verse Number: