चौपाई
 अस बिचारि नहिं कीजअ रोसू। काहुहि बादि न देइअ दोसू।। 
 मोह निसाँ सबु सोवनिहारा। देखिअ सपन अनेक प्रकारा।।
 एहिं जग जामिनि जागहिं जोगी। परमारथी प्रपंच बियोगी।। 
 जानिअ तबहिं जीव जग जागा। जब जब बिषय बिलास बिरागा।।
 होइ बिबेकु मोह भ्रम भागा। तब रघुनाथ चरन अनुरागा।। 
 सखा परम परमारथु एहू। मन क्रम बचन राम पद नेहू।।
 राम ब्रह्म परमारथ रूपा। अबिगत अलख अनादि अनूपा।। 
 सकल बिकार रहित गतभेदा। कहि नित नेति निरूपहिं बेदा।
दोहा/सोरठा
भगत भूमि भूसुर सुरभि सुर हित लागि कृपाल। 
 करत चरित धरि मनुज तनु सुनत मिटहि जग जाल।।93।।
