चौपाई
सुनि जानकीं परम सुखु पावा। सादर तासु चरन सिरु नावा।। 
 तब मुनि सन कह कृपानिधाना। आयसु होइ जाउँ बन आना।।
 संतत मो पर कृपा करेहू। सेवक जानि तजेहु जनि नेहू।। 
 धर्म धुरंधर प्रभु कै बानी। सुनि सप्रेम बोले मुनि ग्यानी।।
 जासु कृपा अज सिव सनकादी। चहत सकल परमारथ बादी।। 
 ते तुम्ह राम अकाम पिआरे। दीन बंधु मृदु बचन उचारे।।
 अब जानी मैं श्री चतुराई। भजी तुम्हहि सब देव बिहाई।। 
 जेहि समान अतिसय नहिं कोई। ता कर सील कस न अस होई।।
 केहि बिधि कहौं जाहु अब स्वामी। कहहु नाथ तुम्ह अंतरजामी।। 
 अस कहि प्रभु बिलोकि मुनि धीरा। लोचन जल बह पुलक सरीरा।।
छंद
तन पुलक निर्भर प्रेम पुरन नयन मुख पंकज दिए। 
 मन ग्यान गुन गोतीत प्रभु मैं दीख जप तप का किए।।
 जप जोग धर्म समूह तें नर भगति अनुपम पावई। 
 रधुबीर चरित पुनीत निसि दिन दास तुलसी गावई।।
दोहा/सोरठा
 कलिमल समन दमन मन राम सुजस सुखमूल। 
 सादर सुनहि जे तिन्ह पर राम रहहिं अनुकूल।।6(क)।।
 कठिन काल मल कोस धर्म न ग्यान न जोग जप। 
 परिहरि सकल भरोस रामहि भजहिं ते चतुर नर।।6(ख)।।
