चौपाई
 इहाँ सुबेल सैल रघुबीरा। उतरे सेन सहित अति भीरा।। 
 सिखर एक उतंग अति देखी। परम रम्य सम सुभ्र बिसेषी।।
 तहँ तरु किसलय सुमन सुहाए। लछिमन रचि निज हाथ डसाए।। 
 ता पर रूचिर मृदुल मृगछाला। तेहीं आसान आसीन कृपाला।।
 प्रभु कृत सीस कपीस उछंगा। बाम दहिन दिसि चाप निषंगा।। 
 दुहुँ कर कमल सुधारत बाना। कह लंकेस मंत्र लगि काना।।
 बड़भागी अंगद हनुमाना। चरन कमल चापत बिधि नाना।। 
 प्रभु पाछें लछिमन बीरासन। कटि निषंग कर बान सरासन।।
दोहा/सोरठा
एहि बिधि कृपा रूप गुन धाम रामु आसीन। 
 धन्य ते नर एहिं ध्यान जे रहत सदा लयलीन।।11(क)।।
 पूरब दिसा बिलोकि प्रभु देखा उदित मंयक। 
 कहत सबहि देखहु ससिहि मृगपति सरिस असंक।।11(ख)।।
