1.6.25

चौपाई
सुनु सठ सोइ रावन बलसीला। हरगिरि जान जासु भुज लीला।।
जान उमापति जासु सुराई। पूजेउँ जेहि सिर सुमन चढ़ाई।।
सिर सरोज निज करन्हि उतारी। पूजेउँ अमित बार त्रिपुरारी।।
भुज बिक्रम जानहिं दिगपाला। सठ अजहूँ जिन्ह कें उर साला।।
जानहिं दिग्गज उर कठिनाई। जब जब भिरउँ जाइ बरिआई।।
जिन्ह के दसन कराल न फूटे। उर लागत मूलक इव टूटे।।
जासु चलत डोलति इमि धरनी। चढ़त मत्त गज जिमि लघु तरनी।।
सोइ रावन जग बिदित प्रतापी। सुनेहि न श्रवन अलीक प्रलापी।।

दोहा/सोरठा
तेहि रावन कहँ लघु कहसि नर कर करसि बखान।
रे कपि बर्बर खर्ब खल अब जाना तव ग्यान।।25।।

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