चौपाई
 सुनि अंगद सकोप कह बानी। बोलु सँभारि अधम अभिमानी।। 
 सहसबाहु भुज गहन अपारा। दहन अनल सम जासु कुठारा।।
 जासु परसु सागर खर धारा। बूड़े नृप अगनित बहु बारा।। 
 तासु गर्ब जेहि देखत भागा। सो नर क्यों दससीस अभागा।।
 राम मनुज कस रे सठ बंगा। धन्वी कामु नदी पुनि गंगा।। 
 पसु सुरधेनु कल्पतरु रूखा। अन्न दान अरु रस पीयूषा।।
 बैनतेय खग अहि सहसानन। चिंतामनि पुनि उपल दसानन।। 
 सुनु मतिमंद लोक बैकुंठा। लाभ कि रघुपति भगति अकुंठा।।
दोहा/सोरठा
सेन सहित तब मान मथि बन उजारि पुर जारि।। 
 कस रे सठ हनुमान कपि गयउ जो तव सुत मारि।।26।।
