चौपाई
 सठ साखामृग जोरि सहाई। बाँधा सिंधु इहइ प्रभुताई।। 
 नाघहिं खग अनेक बारीसा। सूर न होहिं ते सुनु सब कीसा।।
 मम भुज सागर बल जल पूरा। जहँ बूड़े बहु सुर नर सूरा।। 
 बीस पयोधि अगाध अपारा। को अस बीर जो पाइहि पारा।।
 दिगपालन्ह मैं नीर भरावा। भूप सुजस खल मोहि सुनावा।। 
 जौं पै समर सुभट तव नाथा। पुनि पुनि कहसि जासु गुन गाथा।।
 तौ बसीठ पठवत केहि काजा। रिपु सन प्रीति करत नहिं लाजा।। 
 हरगिरि मथन निरखु मम बाहू। पुनि सठ कपि निज प्रभुहि सराहू।।
दोहा/सोरठा
सूर कवन रावन सरिस स्वकर काटि जेहिं सीस। 
 हुने अनल अति हरष बहु बार साखि गौरीस।।28।।
